सकारात्मक स्वतंत्रता क्या है

सकारात्मक स्वतंत्रता क्या है

सकारात्मक स्वतंत्रता क्या है



सकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा में यह बुनियादी विचार शामिल है कि हर व्यक्ति के आत्म के दो भाग होते हैं -

  • उच्चतर-आत्म और 
  • निम्नतर आत्म। 


व्यक्ति का उच्चतर- आत्म उसका तार्किक आत्म होता है और व्यक्ति के निम्नतर- आत्म पर इसका प्रभुत्व होना चाहिए। ऐसा होने पर ही कोई व्यक्ति सकारात्मक स्वतंत्रता के अर्थ में मुक्त या स्वतंत्र हो सकता है। 


बर्लिन (1969) ने इस संबंध में लिखा है कि 'स्वतंत्रता शब्द का सकारात्मक अर्थ किसी व्यक्ति की खुद अपना मालिक होने की इच्छा से उत्पन्न होता है..... 

  • मैं किसी दूसरे आदमी की मर्जी के अनुसार काम नहीं करना चाहता हूँ, मेरी यह इच्छा है कि मैं सिर्फ अपने लिए काम करूँ.... 
  • सबसे बढ़कर मेरी यह इच्छा है कि मैं एक विचारशील, इच्छा रखने वाले, सक्रिय व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान के प्रति जागरूक रहूँ... 
  • मेरी यह इच्छा है कि मैं अपने द्वारा चुने गए विकल्पों के लिए जवाबदेह रहूँ। साथ ही, मेरे पास यह क्षमता हो कि मैं अपने द्वारा चुने गए विकल्पों की व्याख्या अपने विचारों और लक्ष्यों के आधार पर कर पाऊँ ।' 


सकारात्मक स्वतंत्रता


सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि किसी तरह की दखलंदाजी न हो। दरअसल, इसमें यह बात भी शामिल है कि व्यक्ति अपना मालिक हो और उसके उच्चतर-आत्म का उसके निम्नतर- आत्म पर प्रभुत्व हो ।


सकारात्मक स्वतंत्रता काम करने की आजादी है। इसे 'आजादी की प्रयोग अवधारणा' (Exercise concept of freedom) भी कहा जा सकता है। सकारात्मक स्वतंत्रता का अर्थ यह है कि व्यक्ति इन अवसरों का प्रयोग करे और उनका फायदा उठाए, जबकि नकारात्मक स्वतंत्रता में सिर्फ अवसरों का मौजूद होना ही काफी है। 


नकारात्मक स्वतंत्रता


नकारात्मक स्वतंत्रता व्यक्ति को बाहर से किसी तरह का दिशा-निर्देश मिलने के विचार को खारिज करती है। दूसरी ओर, सकारात्मक स्वतंत्रता इस विचार को एक विकल्प के रूप में स्वीकार करती है कि व्यक्ति को कानून या अभिजन (elite) के द्वारा दिशा-निर्देश मिलना चाहिए। यदि कानून व्यक्ति को तार्किक लक्ष्यों की ओर बढ़ने का दिशा-निर्देश देता है, तो यह व्यक्ति के व्यक्तित्व का दमन करने के बजाय उसे स्वतंत्र ( या मुक्त) करता है। 


रूसो सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नैतिक कानूनों का पालन करके ही सच्ची स्वतंत्रता हासिल की जा सकती है। वे यह भी मानते हैं कि नैतिक कानून विवेकशील लोगों की इच्छा और अभिव्यक्ति होते हैं। नव-मार्क्सवादी दृष्टिकोण से हरबर्ट मर्क्यूजे (Herbert Marcuse) ने भी स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा का समर्थन किया है। उनका यह मानना है कि श्रमिक वर्ग अपना सच्चा लाभ देखने में असमर्थ होता है। इसलिए, इस बात की जरूरत है कि क्रांतिकारी अभिजन उसे मुक्ति या लिबरेशन की ओर आगे बढ़ने के लिए दिशा-निर्देश दें।


सकारात्मक स्वतंत्रता में यह विचार भी शामिल है कि सामान्य जीवन पर सामूहिक नियंत्रण होना चाहिए। मसलन, पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए सामूहिक कोशिश की जरूरत होती है और इससे सभी लोगों को फायदा होता है। यह मुमकिन है कि इसके लिए कुछ हद तक बल प्रयोग करना पड़े, लेकिन अमूमन इसमें सबका हित शामिल होने के कारण इसे स्वीकार कर लिया जाता है। 


बर्लिन सहित बहुत से उदारवादी विचारकों ने यह विचार किया है कि स्वतंत्रता की सकारात्मक अवधारणा के साथ यह खतरा भी जुड़ा हुआ है कि शासक निरंकुश बन सकते हैं। एक ऐसे स्थाई अल्पसंख्यक समूह पर विचार कीजिए, जिसे हमेशा दमन का शिकार होना पड़ता है। 


इस अल्पसंख्यक समूह के सदस्य उस लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी करते हैं जिसकी प्रमुख विशेषता बहुमत का हैं शासन है। ऐसे में, यह कहा जा सकता है कि एक लोकतांत्रिक शासन वाले देश के नागरिक होने के कारण ये स्वतंत्र हैं। लेकिन इसके बावजूद यह समूह अल्पसंख्या में होने के कारण दमन का शिकार हो सकता है और ऐसी स्थिति में इसे स्वतंत्र नहीं माना जा सकता है।


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