मैसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आई उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं

मैसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आई उनमें से कौन-सी संस्थाएँ राजा की पहल पर निर्भर थीं।


मैसोपोटामिया में शहरी जीवन शुरू होने के बाद कौन-कौन सी नयी संस्थाएँ अस्तित्व में आई


मैसोपोटामिया में अनेक भव्य नगरों का निर्माण हुआ जिनमें उर, लागाश, बेबीलोन, मारी और निनवे के नाम विशेषकर उल्लेखनीय है। इन शहरों के उत्थान से धीरे-धीरे अनेक संम्थाएँ अस्तित्व में आई, जैसे विभिन्न प्रकार के उद्योगों का पनपना, चीजों का लेन-देन शुरू होना या व्यापारिक गतिविधियों का शुरू होना, श्रम का विभाजन, सैनिक संगठन की स्थापना, भव्य मन्दिरों और महलों का निर्माण, लेखन कला का आरंभ, कला तथा साहित्य की प्रगति, एक सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था की स्थापना आदि आदि। 

इन सभी प्रकार की संस्थाओं की पहल में, एक राजतन्त्र के अंतर्गत राजा की पहल का होना स्वाभाविक ही था। उसके बिना किसी भी राजतन्त्र की भांति, एक पत्ता तक नहीं हिल सकता था। यह अलग बात है कि कुछ संस्थाओं में जैसे सेना के संगठन, मंदिरों तथा राजमहलों के निर्माण तथा सुव्यवस्थित प्रबन्ध व्यवस्था की स्थापना करने में राजा की पहल कुछ में अधिक प्रभावकारी थी।


(1) शहरीकरण के कारण विभिन्न उद्योगों का पनपना स्वाभाविक ही था जिसमें शहरों के बहुत से नागरिक काम पर लग जाते थे और उनकी रोजी-रोटी चलती थी।

(2) शहरीकरण के कारण जो दूसरी संस्था अस्तित्व में आई वह थी व्यापार तथा इससे सम्बन्धित गतिविधियाँ, व्यापार द्वारा ही कृषि उत्पादों और औद्योगिक वस्तुओं का आदान-प्रदान शुरू हुआ और नगरों की सम्पन्नता बढ़ने लगी। विदेशों से व्यापार द्वारा भव्य सामग्री भी देश में आने लगी जिसका प्रयोग भव्य मन्दिरों को सजाने और शानदार महलों को सँवारने में किया जाने लगा। 

(3) लेखन कला के विकास से न केवल औद्योगिक और व्यापारिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिला वरन् शिक्षा-प्रसार।
 
(4) भव्य मन्दिरों का निर्माण भी शहरीकरण की अपनी विशेषता है। मैसोपोटामिया के आरंभिक शासक पुरोहित ही होते थे और इस प्रकार बहुत नगरों का निर्माण इन मन्दिरों के इर्द-गिर्द ही हुआ। धर्म की समाज में प्रधानता थी इसलिये जिन शासकों का नियंत्रण मंदिरों पर होता था उनके आदर और मान को चार चाँद लग जाते थे इसलिये मंदिर उत्तरोत्तर अपनी भव्यता में बढ़ते गए और उनके साथ-साथ शासकों का प्रभुत्व भी बढ़ता चला गया इसलिये मंदिरों पर धन व्यय करने में मैसोपोटामिया के शासक सबसे आगे रहते थे। सृजन और विज्ञान के क्षेत्र में आशातीत प्रगति देखने को मिली।

(5) शहरीकरण में श्रम-विभाजन की महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। जब तक विभिन्न प्रकार के व्यवसाइयों, कारीगरों आदि के कामकाज को स्पष्ट रूप से बाँट नहीं दिया जाता आर्थिक क्षेत्र में प्रगति करना कठिन हो जाता है।

(6) सेना के बिना मैसोपोटामिया के शासकों को आन्तरिक व्यवस्था बनाए रखना और विदेश आक्रमणकारियों से अपने आपको बचाना कठिन हो जाता इसलिये उन्होंने सेना के संगठन की ओर अपना विशेष ध्यान दिया। सैनिक कार्यवाहियों में लूट का सामान और कैदी भी मिलने की संभावना रहती थी। प्रजा में लूट का समान बाँट कर शासक लोकप्रिय बन जाते थे और कैदियों से शानदार महल बनवाने और भव्य मन्दिरों के निर्माण का कार्य आसान हो जाता था।

(7) सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था के बिना राज्य का कामकाज चलाना कठिन हो जाता इसीलिये मैसोपोटामिया के शासकों ने एक सुव्यवस्थित प्रशासन व्यवस्था की नींव रखी। ऐसी प्रबन्ध व्यवस्था से जहाँ राज्य में शान्ति तथा व्यवस्था बनी रही वहाँ सड़  का निर्माण करना, मन्दिरों और महलों को बनाना तथा विदेशी यात्रियों और शासकों का आदर-मान करना तथा भव्य पार्टियों का आयोजन करना आसान हो जाता था।



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