महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म काल स्थान और कुल जीवन परिचय

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म काल स्थान और कुल जीवन परिचय

महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म काल स्थान और कुल जीवन परिचय, dayanand sarswati jivni
महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म काल स्थान और कुल जीवन परिचय

सर्दी के अन्वेषक परम योगी संत को जन्म देने का श्रेय मोरवी राज्य गुजरात के टंगरा ग्राम को है । वह सौभाग्यशाली दिन था शनिवार फाल्गुन बंदी दशमी कृष्ण पक्ष विक्रमी संवत 1849 ई 12 फरवरी सन 1825 । जब कृष्ण जी तिवारी ने अपने प्रथम बेटे का नाम मूलजी रखा । पिता जी कर्षन जी तिवारी औदीच्य ब्राह्मण थे और शंकर जी के अनन्य भक्त भी, इसलिए पिता बेटे को मूल शंकर कह कर पुकारते थे । घर के कुछ लोग मूल शंकर को प्यार से दयाल भी कहते थे ।
            कृष्ण जी तिवारी का परिवार संपन्न भी था और सूसभ्य भी । घर में भूमि हारी थी । वह लेन-देन का काम भी करते थे सरकार में सम्मान भी था इसलिए उन्हें सरकार की ओर से जमीदारी प्राप्त थी । यह पद तहसीलदारी के बराबर होता था करसन जी पक्के शिव भक्त थे ।  बेटे को भी शैवमत का अनुयाई बनाना चाहते थे । मिट्टी के शिव पिंडी बनाकर उनकी उपासना करने का आग्रह करते थे ।
               कथा व्रत उपवास शिव उत्सव आदि धार्मिक कृत्य में सदैव मूल शंकर को अपने साथ रखते थे । उन्होंने अपने आस्था के अनुरूप ही उसकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर लिया था । 14 वर्ष की अल्पायु में ही मूल शंकर ने यजुर्वेद संहिता को कंठस्थ कर लिया था । रुपावली आदि व्याकरण के छोटे ग्रंथ पिता ने स्वयं ही बेटे को पढ़ा दिए थे । 
                इस वर्ष शिवरात्रि का व्रत आया तो पिता ने ये कठोर व्रत रखने का बेटे को आदेश दिया । बेटा ऐसा करने के लिए तैयार नहीं था । मां भी बेटे के देर रात तक भूखा रहने के पक्ष में नहीं थी । परंतु शिव के अनुयाई पिता ने किसी की नहीं मानी । उनके बेटे को इस व्रत का महत्व समझाया और कहा कि इस व्रत को निष्ठा पूर्वक रखने से स्वर्ग आनंद की प्राप्ति होती है । इस पर बेटा तैयार हो गया । और उसने विधिपूर्वक व्रत उपवास की तैयारी कर ली । पिता प्रसन्न हो गए इस समय उसका 14 साल शुरू हो चुका था ।

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