महर्षि दयानंद सरस्वती कौन थे और कैसे बने महान || Who is Maharishi Dayanand Sarswati
Who is Maharishi Dayanand Sarswati |
अब वह अलकनंदा गंगा नदी के किनारे पर था । उसने तय कर लिया था कि जब तक वह किसी विद्वान सिदृ योगी को नहीं ढूंढ लेगा तब तक विराम नहीं लेगा । कुछ सच्चे शिव को प्राप्त कर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर लेना चाहता था । उसने पर्वत की उत्पत्ति मे स्वयं को ढकेल दिया । रास्ता आसान नहीं था सामने भी बीहड और भयंकर शीत का मौसम । तन पर अपर्याप्त वस्त्र और नंगे पैर । परंतु धुन का धनी युवा साधु इन सब की उपेक्षा कर अलकनंदा नदी के स्रोत की ओर बढ़ता चला गया ।
पर्वत टीले जंगल सब श्वेत खड्डो से अटे पड़े थे । परंतु उनकी गति धीमी नहीं हुई । कभी कभी सूर्य की किरने वृक्षों के घने झुरमुटो से झांक समय का आभास करा देती थी । चलते चलते दिन का तीसरा पहर आरंभ हो गया, परंतु कहीं दूर तक भी किसी बस्ती के होने की संभावना उसे नहीं लगी । तीसरे पहर के ढलते ढलते भूख और प्यास दोनों ही जागृत हो गए । उन्हें शांत करने का उसके पास कोई साधन नहीं था । मन की संतुष्टि के लिए उसने एक छोटा हिमखंड उठाया और मुंह में डाल लिया परंतु ऐसा करने से उसकी भूख शांत नहीं नहीं हुई और ना ही प्यास शांत हुई । उल्टा शरीर में शीत और ठंड बढ़ गया फिर भी उसने विश्राम करने की नहीं सोची ।
साॅझ होते होते वह अलकनंदा नदी के उद्गम स्थान के समीप पहुंच गया । आगे मार्ग के चिन्ह लुप्त हो गए थे । सामीने ऊंची पहाड़ियां थी और घने जंगल थे । अब वो थक कर चूर हो गया था कंपा देने वाली ठंड उसके पोर पोर में समा गई थी कुछ देर ठहर कर विश्राम कर लेने का कोई स्थान उसे दिखाई नहीं दे रहा था । उसने निर्णय किया कि अलकनंदा को पार कर आगे का मार्ग ढूढने का प्रयास करे, और वह तुरंत उसकी बर्फीली धाराओं में उतर गया । नदी में हिमखण्डो की चोट से पैर घायल हो गए थे ।
अति शीत के कारण पैर सुन हो गए उसे लगा कि अब वह संभल नहीं पाएगा । फिर ऐसा सोचा कि यदि मझधार में गिर गया तो फिर कभी ना उठ पाएगा । उसने हिम्मत टूटने नहीं दी और बढ़ता रहा । कुछ देर के बाद ही वह नदी के किनारे पर आ गया था अब कदम आगे बढ़ने से जवाब दे गए । वह कहीं बैठ गया शरीर से कपड़े उतारे और उन्हें सुन्न हो गए पैरों पर लपेट लिया । ऐसा करने से उसे कुछ समय बाद सुन्न हुए पैरों से राहत महसूस हुए । इस समय तक धीरे-धीरे धरती पर अंधेरा उतर आया था । साधु ने अपने चारों और दृष्टी घुमाई । किसी तरफ भी रात बिताने के लिए कोई आश्रय दिखाई नहीं दिया । वह उठा और अलकनंदा के किनारे से वापस हो लिया । रात के लगभग 8:00 बजे वह बद्रीनारायण पहुंच गया । वहां उसने प्रसिद्ध विद्वान महंत रावल जी से वेदो और दर्शनों पर गहन चर्चा की । यह जुझारू व्यक्तित्व का सत्यान्वेशी कोई और नहीं लोक में प्रसिद्ध महर्षि दयानंद सरस्वती नाम का साधू ही था ।
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