'मैं भी चौकीदार' क्या है ये क्यो एक आंदोलन बन गया है

 'मैं भी चौकीदार' क्या है ये क्यो एक आंदोलन बन गया है । 


 'मैं भी चौकीदार' क्या है ये क्यो एक आंदोलन बन गया है ।

 'मैं भी चौकीदार' क्या है ये क्यो एक आंदोलन बन गया है । 




सोशल मीडिया “ मैं भी चौकीदार” के नारे से पटा पड़ा है। मानो एक होड़ सी मची हुई है अपने आप को चोकीदार साबित करने मे। नेताजी द्वारा महज ये कह दिए जाने भर से के हम सब चोकीदार है से लोग अभिभूत है।

हमारी तार्किक क्षमता को क्या हो गया है?

क्यों हम किसी भी पार्टी के अभियान का हिस्सा बन जा रहे है?

क्यों हमे महज नारो और बड़े वादों से मनोरंजन की आदत पड़ गयी है?

क्योंकि हम आत्म समर्पण कर चुके है!
मानसिक,बौद्धिक हर स्तर पर !
हमे सरकारों की विकास की नीतियों और तरीको पर वाद विवाद ,समर्थन और विरोध करना चाहिए न कि नारो के झुनझुने को थामकर उसे बजाने की होड़ में शामिल होकर।
जो रक्त हिंदुस्तान की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को हासिल करने में बहा है उसका सम्मान हम मात्र एक जिम्मेदार व जागरूक नागरिक बनकर ही अदा कर सकते है।
फेसबुक एवं ट्विटर पर अपने नाम के आगे चोकीदार लगाने से ,अपनी प्रोफाइल फोटो पर एक दिन तिरंगा लगाने से या अपने पसंद के नेता की सपोर्ट में रात दिन tनारे लगाने से हम अपने बहुमुल्य लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर रहे है।
रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि मैं भी चौकीदार कैंपेन आज एक जन आंदोलन बन गया है.  उन्होंने कहा कि याद करिए 2014 में देश की क्या हालत थी, 2G, कोलगेट के बारे में सभी को पता है यही कारण है कि ऐसे में प्रधानमंत्री ने कहा में देश का चौकीदार बनूंगा.
आपको बता दें कि 2014 में भी भारतीय जनता पार्टी की तरफ से इसी तरह ‘चाय पर चर्चा’ कैंपेन की शुरुआत की गई थी. तब कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर ने नरेंद्र मोदी को ‘चायवाला’ कहा था, जिसके जवाब में बीजेपी ने ‘चाय पर चर्चा’ कैंपेन की शुरुआत की थी.अब भारतीय जनता पार्टी राहुल गांधी द्वारा दिए गए ‘चौकीदार चोर है’ के नारे पर पलटवार कर रही है और इस तरह का कैंपेन शुरू कर रही है.


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