हड़प्पायुगीन नगर योजना तथा अर्थव्यवस्था पर एक निबंध लिखिए

 हड़प्पायुगीन नगर योजना तथा अर्थव्यवस्था पर एक निबंध लिखिए


हड़प्पायुगीन नगर योजना तथा अर्थव्यवस्था पर एक निबंध लिखिए



हड़प्पा संस्कृति की विशेषता थी इसकी नगर योजना प्रणाली। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों नगरों के अपने-अपने दुर्ग थे जहाँ शास्सक वर्ग का परिवार रहता था। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर एक-एक उससे निम्न स्तर का शहर था जहाँ ईटों के मकानों में सामान्य लोग रहते थे | इन नगरों में भवनों के बारे में विशिष्ट बात यह थी कि ये जाल की तरह विन्यस्त थे। तदनुसार सड़कें एक-दूसरे को समकोण बनाते हुए काटती थीं और नगर अनेक खंडों में विभक्त थे यह बात सभी सिंधु बस्तियों पर लागू थी, चाहे वे छोटी हों या बड़ी। 


बड़े-बड़े भवन हड्प्पा और मोहनजोदड़ो दोनों की विशेषता हैं, दूसरा तो भवनों में और भी समृद्ध है। उनके स्मारक इस बात का प्रमाण हैं कि वहाँ के शासक मजदूर जुटाने और कर-संग्रह में परम कुशल थे। ईंटों की बड़ी-बड़ी इमारतें देखकर सामान्य लोगों की भी यह भावना होगी कि इनके शासक कितने प्रतापी और प्रतिष्ठावान धे। मोहनजोदड़ो का शायद सबसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल है विशाल स्नानागार, जिसका जलाशय दुर्ग के ओले में है। यह ईंटों के स्थापत्य का एक सुंदर उदाहरण है।


यह विशाल स्नानागार धर्मानुष्ठान संबंधी स्नान के लिए बना होगा जो भारत में हर धार्मिक कर्म में  आवश्यक रहा है। मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत है अनाज रखने का कोठार, जो 45.71 मी. लंबा और 15.23 मी. चौड़ा है। हडण्पा के दो कमरों वाले बैरक भी हैं, जो शायद मजदूरों के रहने के लिए थे। कालीबंगा में भी नगर के दक्षिण भाग में ईंटों के चबूतरे मिले हैं जो शायद कोठारों के लिए बने होंगे। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि कोठार हड़प्पा संस्कृति के महत्त्वपूर्ण अंग थे। हडप्पा संस्कृति के नगरों में पकी ईंटों का इस्तेमाल एक विशेष वात है, क्योंकि मिस्र के समकालीन भवनों में धूप में सूखी ईंटों का ही प्रयोग हुआ था। मोहनजोदडो की जल निकास प्रणाली अद्भुत थी। लगभग सभी नगरों के हर छोटे या बड़े मकान में प्रांगण और स्नानागार होता था कालीबंगा के अनेक घरों में अपने-अपने कुएँ थे। 


घरों का पानी बहकर सड़कों तक आता जहाँ इसके नीचे मोरियाँ बनीं हुई थीं। अक्सर ये मोरियाँ ईंटों और पत्थर की सिल्लियों से ढकी रहती थीं हड़प्पा की निकास प्रणाली तो और भी विलक्षण है। शायद कांस्य युग की दूसरी किसी भी सभ्यता ने स्वास्थ्य और सफाई को इतना महत्त्व नहीं दिया जितना कि हड़प्पा संस्कृति के लोगों ने दिया।


अर्थव्यवस्था-हडप्पा सभ्यता में लोगों का आर्थिक जीवन बहुत समृद्ध था। 


प्राप्त प्रमाण से चलता है कि सिन्धुघाटी के निवासी अनाजों में गेहूँ, जौ, कपास, मटर, तिल और चावल तथा फलों में खजूर, नारियल, तरबूज, केला, अनार तथा नींबू पैदा करते थे। वे कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी करते थे। हड़प्पा निवासी विभिन्न धातुओं, मिट्टी, लकड़ियों और पत्थरों का प्रयोग विभिन्न उद्योगों और व्यवसाय में करते थे। उनका औद्योगिक जीवन बहुत समुद्ध था। औद्योगिक एवं शिल्पी वर्ग में कुम्हार, सुनार, हाथीदाँत के शिल्पी, बुनकर, रंगरेज आदि होते थे धातुओं के साथ-साथ शंख, सीप, घोंघा और हाथीदाँत के काम में बहुत निपुण थे। 


धातुओं को गलाने, ढालने का काम हड़प्पा कारीगर जानते थे ताँबा इनकी मुख्य धातु होती थी। इस सभ्यता में आतरिक व्यापार बहुत समृद्ध था। नाप और तौल के लिए विभिन्न मानकों का सटीक प्रयोग होता था। तौल के लिए विभिन्न प्रकार के पाषाणों के बाटों का उपयोग करते थे। हड़प्पा सभ्यता के निवासी भारत के विविध भागों से ही व्यापार नहीं करते थे बल्कि एशिया के अन्य देशों के साथ भी इनका व्यापारिक सम्बन्ध बना हुआ था। हड़प्पा सभ्यता से प्राप्त छोटी आकृति की मोहरों से हड़प्पा के वाणिज्य और व्यवसाय का स्पष्ट पता चलता है।


समुद्री व्यापार के लिए सिन्धु सभ्यता के लोगों ने समुद्र तट पर अनेक व्यापारिक केन्द्र स्थापित किए थे। यहाँ वे समुद्री व्यापार के लिए व्यापारिक माल-असबाव की अदला-बदली करते थे और आवश्यक  खाद्य सामग्री प्राप्त करते थे। सम्भवतया आधुनिक सौराष्ट्र के समुद्री तट और उसके समीप किम नदी तट पता पर भगत्राव, नर्मदा तट पर मेघम, साबरमती नदी तट पर लोथल, हिरण्य नदी तट पर प्रभास आदि समुद्र तटीय व्यापार के लिए केन्द्र और बन्दरगाह थे।


Read More


How To Celebrate Eid-Ul_Fitar Essay in India - ईद-उल-फितर पर निबंधमहाजनपदों के विकास कब हुआ


Post a Comment

0 Comments