महाजनपदों के विकास कब हुआ
षोडश महाजनपद एवं गणसंघ - छठी शताब्दी से चौथी शताब्दी ईं.पू. के मध्य तक भारतीय इतिहास में अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं। इस समय सामाजिक, आर्थिक तथा राजनोतिक जीवन में जो बदलाव आया, उससे क्षेत्रीय राज्यों का विकास हुआ जिन्होंने शीघ्र ही महाजनपदों का स्वरूप ग्रहण कर लिया।
उत्तर-वैदिक युग में हुए आर्थिक परिवर्तनों ने इन महाजनपदों के विकास की पूष्ठिभूमि तैयार कर ही। कबीलाई तत्त्वों के कमजोर पड़ने से क्षेत्रीयता की प्रवृत्ति विकसित हुई। इसके फलस्वरूप कबीलार राज्यों की जगह पर क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। इस प्रक्रिया ने वैदिक जन का स्वरूप बदल दिया और जनपदों या महाजनपदों के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। जन से जनपद में परिवर्तन विभिन्न परिस्थितियों में हुआ। उदाहरणस्वरूप -मत्स्य, चेदि, काशी, कोशल इत्यादि जनों ने बिना किसी बाहरी सहयोग के स्वयं ही विकास करते-करते जनपद का स्वरूप ग्रहण कर लिया। दूसरी प्रक्रिया के दौरान अनेक जनों ने संयुक्त होकर जनपद की स्थापना की। इसका सबसे सुन्दर उदाहरण है पांचाल, जो पाँच जनों के सहयोग से बना। कुछ कमजोर जनों को अपने में मिलाकर ज्यादा शक्तिशाली जनों ने महाजनपद का स्थान ग्रहण कर लिया।
उनमें निम्नलिखित राज्यों का उल्लेख मिलता है-
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