केकई की हठ - A story which connect past with present

केकई बोली दशरथ से - केवल मुझे और भरत को सजा न दीजिये जैसे भी हो राम सीता और लक्षमण को वन से बुला लीजिये |
दशरथ बोले - आखिर तुम बदल ही गयी, मन में ममता की पुरवाई चल ही गयी |
केकई बोली - हे नाथ कहा का ये न्याय है, वे तीनो वन में मुफ्त के कंद मूल तथा फल खाते है और हम यहाँ महंगाई से टकराते है |
केकई की हठ - A Motivational Thought
केकई की हठ - A Motivational Thought
केकई की बात मान दशरथ को एक टेलीग्राम भिजवाया | तीन महीने बाद लंकापति का जवाब आया कि राम लक्षमन और सीता जंगल में कहीं खो गए है | विभिषण का कहना है कि महंगाई के डर से आदिवासी हो गए है |

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