इस तरह महर्षि दयानंद सरस्वती के अंदर आत्मबोध का उदय हुआ।
इस तरह महर्षि दयानंद सरस्वती के अंदर आत्मबोध का उदय हुआ। |
बस्ती के सभी शैव अपने बच्चों के साथ शिव आराधना के लिए मंदिर की ओर प्रस्थान करने लगे । मूल शंकर भी पिता के साथ मंदिर चला गया । पिता ने उसे पहले ही समझा दिया था कि जो भक्त पूरी रात जागरण करके शिवजी की आराधना करता है उसे ही सफलता की प्राप्ति होती है । मूल शंकर ने निश्चय कर लिया था कि वह सारी रात जागकर शंकर जी की आराधना करेगा । उसे ही सफलता की प्राप्ति होगी ।
मूल शंकर ने निश्चय कर लिया कि वह सारी रात जाकर शिव की आराधना करता रहेगा । परंतु उस समय उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब रात्रि का तीसरा पहर आरंभ होते ही लगभग सभी आराधक मंदिर से बाहर जाकर निद्रा की गोद में समाते चले गए । उसके पिता भी वही लुढ़क गए और खर्राटे भरने लगे । पर धुन का धनी मूल शंकर शीतल जल की सहायता से जागता रहा और विधिवत शिव की अराधना में लगा रहा । सभी भक्त गहरी नींद में सोए हुए थे । अवसर पाते ही चूहे अपने बिलों से निकल आए और शिव पिंडी पर चढ़े प्रसाद का भोग लगाने लगे । यह सब देखकर पत्थर पूजा से मूल शंकर का मोह भंग हो गया ।
उसे निश्चय हो गया कि वह शंकर नहीं है जिस की कथा उसे सुनाई गई है कि वह तो चेतन है डमरू बजाता है बैल पर चढ़कर यात्रा करता है । शत्रुओं के संघार के लिए त्रिशूल रखता है । परंतु यह शिव तो चूहों को अपने ऊपर चढ़ने से रोक पाने में भी असमर्थ है ऐसा विचार आते ही उसने अपने पिता को जगा दिया और एक सीधा सा प्रश्न किया -"पिता जी के कथा वाला ही शिव है या कोई दूसरा" ?
पिता को उसके प्रश्न पर क्रोध आया वह उसके इस प्रश्न का उत्तर ना दे सके । उल्टे उसी से प्रश्न कर दिया- "तु ऐसा क्यों पूछ रहा है"
मूल शंकर घबराया नहीं है उसने पिता के इस प्रश्न का उत्तर तुरंत दिया । "पिताजी में यह प्रश्न आपसे इसलिए पूछ रहा हूं कि जिस शिव की कथा आपने मुझे सुनाई है वह मनुष्य के सामने चेतन है । परंतु यह शिव जो मंदिर में है वह अपने ऊपर चढ़े हुए चूहे को भी नहीं रोक पा रहा । आखिर चेतन शिव अपने ऊपर इन तुच्छ चूहों को क्यों चढ़ने देगा" ?
मूल शंकर की इस जिज्ञासा से करसन जी की सारी नीद जाती रही । अब उन्होंने उसे बड़े प्यार से समझाना आरंभ किया -"बेटे महादेव जी कैलाश पर्वत पर रहते हैं । कलयुग में उन के साक्षात दर्शन नहीं होते इसलिए उनकी मूर्ति बनाकर आराधना करने से कैलाश वासी शंकर प्रसन्न हो जाते हैं" लेकिन पिता के इस उत्तर से मूल शंकर की जिज्ञासा शांत ना हुई । उसे निश्चय हो गया था कि पिताजी जिस महादेव की कथा सुनाते हैं मंदिर में वह महादेव नहीं है । इसलिए मंदिर में और ठहरना उसे अर्थपूर्ण नहीं लगा । उसकी आंखों में नींद भी अपना प्रभाव जमाने लगी थी । भूख सता रही थी अतः एक पल भी वहां ठहरना उसके लिए कठिन हो गया । उसने अपने पिता से घर जाने की आज्ञा मागी । पिता मना नहीं कर पाए एक सिपाही साथ कर दिया । परंतु भोजन करने की मनाही कर दी ।
लेकिन मूल शंकर ने घर जाते ही माता से लेकर भोजन कर लिया और सो गए । पिता जी प्रातः काल मंदिर से घर लौटे तो यह जानकर बहुत नाराज हुए और उसे बोले तूने बिना महादेव की उपासना के भोजन क्यों कर लिया । मूल शंकर ने विचारा और कहा "यह कथा वाला महादेव नहीं है इसलिए मैं उसकी उपासना नहीं करूंगा"
मंदिर के महादेव से मूल शंकर के आस्था उठ गई थी । पिता का मन रखने के लिए उसने पिता से कहा कि पढने के कारण मुझे इतना अवकाश नहीं मिलता कि मैं पूजा पाठ कर सकूं । मूल शंकर के चाचा और माता ने भी पिता करसन जी को यही समझाया कि बेटे को निश्चित होकर पढ़ने दिया जाना चाहिए ।
मूल शंकर ने निश्चय कर लिया कि वह सारी रात जाकर शिव की आराधना करता रहेगा । परंतु उस समय उसके आश्चर्य का ठिकाना ना रहा जब रात्रि का तीसरा पहर आरंभ होते ही लगभग सभी आराधक मंदिर से बाहर जाकर निद्रा की गोद में समाते चले गए । उसके पिता भी वही लुढ़क गए और खर्राटे भरने लगे । पर धुन का धनी मूल शंकर शीतल जल की सहायता से जागता रहा और विधिवत शिव की अराधना में लगा रहा । सभी भक्त गहरी नींद में सोए हुए थे । अवसर पाते ही चूहे अपने बिलों से निकल आए और शिव पिंडी पर चढ़े प्रसाद का भोग लगाने लगे । यह सब देखकर पत्थर पूजा से मूल शंकर का मोह भंग हो गया ।
उसे निश्चय हो गया कि वह शंकर नहीं है जिस की कथा उसे सुनाई गई है कि वह तो चेतन है डमरू बजाता है बैल पर चढ़कर यात्रा करता है । शत्रुओं के संघार के लिए त्रिशूल रखता है । परंतु यह शिव तो चूहों को अपने ऊपर चढ़ने से रोक पाने में भी असमर्थ है ऐसा विचार आते ही उसने अपने पिता को जगा दिया और एक सीधा सा प्रश्न किया -"पिता जी के कथा वाला ही शिव है या कोई दूसरा" ?
पिता को उसके प्रश्न पर क्रोध आया वह उसके इस प्रश्न का उत्तर ना दे सके । उल्टे उसी से प्रश्न कर दिया- "तु ऐसा क्यों पूछ रहा है"
मूल शंकर घबराया नहीं है उसने पिता के इस प्रश्न का उत्तर तुरंत दिया । "पिताजी में यह प्रश्न आपसे इसलिए पूछ रहा हूं कि जिस शिव की कथा आपने मुझे सुनाई है वह मनुष्य के सामने चेतन है । परंतु यह शिव जो मंदिर में है वह अपने ऊपर चढ़े हुए चूहे को भी नहीं रोक पा रहा । आखिर चेतन शिव अपने ऊपर इन तुच्छ चूहों को क्यों चढ़ने देगा" ?
मूल शंकर की इस जिज्ञासा से करसन जी की सारी नीद जाती रही । अब उन्होंने उसे बड़े प्यार से समझाना आरंभ किया -"बेटे महादेव जी कैलाश पर्वत पर रहते हैं । कलयुग में उन के साक्षात दर्शन नहीं होते इसलिए उनकी मूर्ति बनाकर आराधना करने से कैलाश वासी शंकर प्रसन्न हो जाते हैं" लेकिन पिता के इस उत्तर से मूल शंकर की जिज्ञासा शांत ना हुई । उसे निश्चय हो गया था कि पिताजी जिस महादेव की कथा सुनाते हैं मंदिर में वह महादेव नहीं है । इसलिए मंदिर में और ठहरना उसे अर्थपूर्ण नहीं लगा । उसकी आंखों में नींद भी अपना प्रभाव जमाने लगी थी । भूख सता रही थी अतः एक पल भी वहां ठहरना उसके लिए कठिन हो गया । उसने अपने पिता से घर जाने की आज्ञा मागी । पिता मना नहीं कर पाए एक सिपाही साथ कर दिया । परंतु भोजन करने की मनाही कर दी ।
लेकिन मूल शंकर ने घर जाते ही माता से लेकर भोजन कर लिया और सो गए । पिता जी प्रातः काल मंदिर से घर लौटे तो यह जानकर बहुत नाराज हुए और उसे बोले तूने बिना महादेव की उपासना के भोजन क्यों कर लिया । मूल शंकर ने विचारा और कहा "यह कथा वाला महादेव नहीं है इसलिए मैं उसकी उपासना नहीं करूंगा"
मंदिर के महादेव से मूल शंकर के आस्था उठ गई थी । पिता का मन रखने के लिए उसने पिता से कहा कि पढने के कारण मुझे इतना अवकाश नहीं मिलता कि मैं पूजा पाठ कर सकूं । मूल शंकर के चाचा और माता ने भी पिता करसन जी को यही समझाया कि बेटे को निश्चित होकर पढ़ने दिया जाना चाहिए ।
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