आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे

आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे?


आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि पुराने मंदिर बहुत कुछ घर जैसे ही होंगे



मैसोपोटामिया के लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे और पूजा के इस कार्य को करने के लिए उन्होंने अनेक मन्दिर बनवा रखे थे। इन मन्दिरों को जिग्गुरात (Ziggurats) कहा जाता था इतिहासकार एच. जी. वैल्स (H.G. Wells) के शब्दों में जिग्गुरात ऐसे अनेक मंजिलों वाले भवन को कहते हैं जिसकी ऊपरी मंजिलें उत्तरोत्तर निचली मंजिलों को अपेक्षा छोटी होती जाती हैं और ऊपर चढ़ने के लिए विशेष सीढ़ियों का प्रबन्ध होता है जो बहर से स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं।" ऐसे मन्दिर मीलों से दिखाई पड़ते थे। परन्तु ये मिस्र के विशाल हालों वाले मन्दिरों से भिन्न होते थे। मिश्र के मन्दिर विशाल होने पर भी प्राय: एक मंजिल वाले ही होते थे।


आरम्भिक मन्दिर घरों की भाँति ही होते थे क्योंकि मन्दिर भी किसी देवता का घर होता था केवल कुछ मन्दिरों की दीवार कुछ खास अंतरालों के बाद भीतर और बाहर की ओर मुड़ी हुई होती थी। ये मन्दिर, घरों की भाँति इसलिये भी होते थे क्योंकि पुजारी लोग स्वयं भी इसी में रहते थे। कुछ मन्दिर घर की भाँति इसलिये भी नज़र आते थे क्योंकि मैसोपोटामिया के अनेक नमरों के शासक पुरोहित लोग ही होते थे। क्योंकि वे वहाँ रहते थे और अपना सारा कार्य वहाँ से ही चलाते थे इसलिये मन्द्रिर घर का भी काम करते रहे और घर की भाँति नज़र आते रहे।


मन्दिर सामाजिक जीवन का केन्द्र बन चुके थे इसलिए भी घर की सी उनमें विशेषतायें बनी रहीं। इन्हीं मन्दिरों में जादू-टोने से बीमारियाँ ठीक की जाती थीं यहाँ पर लिखाई-पढ़ाई का कार्य होता था और ज्योतिष जानने वाले इसे प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल करते थे। कई बार चीजों के लेन-देन का कार्य भी यहीं होता था। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि मन्दिर लोगों के धार्मिक जीवन और सामाजिक जीवन का केन्द्र बने रहे।

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