चित्रित धूसर मृद्भाण्ड क्या है | What is the painted gray pot
चित्रित धूसर मृद्भाण्ड - कांस्ययुगीन सभ्यता के पश्चात् लौहयुगीन संस्कृतियों का प्रारंभ होता है। लगभग 1400 ई.पू. के आसपास एशिया माइनर में लोहे की खोज ने मानव जीवन में महत्त्वपूर्ण क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया। अब कांसे के स्थान पर लोहे के उपकरण बनने लगे जो ज्यादा स्थायी, टिकाऊ, उपयोगी और कम खर्चीले थे लोहे के उपकरणों एवं हथियारों का उपयोग कृषि पर आधारित बस्तियों की स्थापना हुई।
लौहयुग की निरंतरता के कारण ही सिक्के का प्रचलन हुआ, नगरों का विकास हुआ तथा बड़े-बड़े क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ। भारत में अनेक स्थलों की खुदाइयाँ की गई हैं जहाँ लौहयुगीन संस्कृतियों का प्रमाण मिलता है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि भारत में आयं के आगमन के साथ ही लोहे का प्रचलन आरंभ हुआ। उत्तर-वैदिक काल से लोहे का प्रमाण पुरातात्विक एवं साहित्यिक ग्रंथों में मिलता है। लगभग 1000 ई.पू. से गंधार, बलूचिस्तान, पूर्वी पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान इत्यादि क्षेत्रा से लोहे के प्रयोग का प्रमाण मिलता है। इस समय की संस्कृति एवं अर्थव्यवस्था ऋग्वैदिक काल की तुलना से में अधिक विकसित था। इस समय के भाले, काँटे, कुल्हाड़ियाँ, जखेड़ा से कुदाल, अतरंजीखेड़ा से दरातियाँ, चाक आदि मिले हैं।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि अनेक स्थलों से लौह अयस्क मिलते हैं, जिनसे अनुमान लगाया जाता है कि वहाँ लोहे की ढलाई होती थी इस युग में चाक की सहायता से विशेष प्रकार के मिट्टी के बने बर्तन चित्रित धूसर मृद्भांड (Painted Grey Ware) रूप से पाए जाते हैं। अत: इस संस्कृति को चित्रित धूसर मृद्भांड संस्कृति (Painted Grey Ware Culture) भी कहा जाता है। इस समय की आर्थिक स्थिति अत्यंत उन्नत थी। स्थायी निवास, विस्तृत कृषि, शिल्प तथा व्यवसाय के प्रमाण इस समय मिलते हैं। इस समय की उन्नत अर्थव्यवस्था ने छठी शताब्दी ई.पू. में हुए गंगाधाटी में शहरीकरण के दूसरे चरण की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। अहिच्छत्र, आलमगीरपुर, अतरंजीखेड़ा, हस्तिनापुर, मथुरा, रोपड़, नोह, नगदा, परण, पांडुराजार ढीबी, चिरांद इत्यादि अनेक स्थलों से लोहा एवं चित्रित धूसर मृद्भांड मिले हैं। दक्षिण भारत के महापाषाणों से भी 1000 ई.पू. के आसपास से लोहा मिलता है। अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि 1000 ई. के आसपास से भारत में लौह युग आरंभ हो चुका था तथा लौहयुगीन संस्कृतियों में कृषि के उत्पादन में वृद्धि हो रही थी तथा जीवन स्थापित्य की तरफ अग्रसर हो रहा था।
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