भारतीय संविधान कैसे बना ?
भारत के संविधान के निर्माण में संविधान सभा के सभी 389 सदस्यो ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,26 नवम्बर 1949 को सविधान सभा ने पारित किया और इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इस सविधान में सर्वाधिक प्रभाव भारत शासन अधिनियम 1935 का है। इस में लगभग 250 अनुच्छेद इस अधिनियम से लिये गए हैं।
औपचारिक रूप से एक संविधान सभा ने संविधान को बनाया जिसे
अविभाजित भारत में निर्वाचित किया गया था। इसकी पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई और
फिर 14 अगस्त, 1947 को विभाजित भारत के संविधान सभा के रूप में इसकी पुन: बैठक हुई।
1935 में स्थापित प्रांतीय विधान सभाओं के सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष विधि से
संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव हुआ। संविधान सभा की रचना लगभग उसी योजना के
अनुसार हुई जिसे ब्रिटिश मंत्रिमंडल की एक समिति 'कैबिनेट मिशन ने प्रस्तावित किया
था।
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इस योजना के अनुसार
- प्रत्येक प्रांत, देशी रियासत या रियासतों के समूह को उनकी जनसंख्या के अनुपात में सीटें दी गईं । मोटे तौर पर दस लाख की जनसंख्या पर एक सीट का अनुपात रखा गया। परिणामस्वरूप ब्रिटिश सरकार के प्रत्यक्ष शासन वाले प्रांतों को 292 सदस्य तथा देशी रियासतों को न्यूनतम 93 सीटें आवंटित की गई।
- प्रत्येक प्रांत की सीटों को तीन प्रमुख समुदायों - मुसलमान, सिख और सामान्य में उनकी जनसंख्या के अनुपात में बाँट दिया गया।
- प्रांतीय विधान सभाओं में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों ने अपने प्रतिनिधियों को चुना और इसके लिए उन्होंने समानुपातिक प्रतिनिधित्त्व और एकल संक्रमण मत पद्धति का प्रयोग किया।
- देशी रियासतों के प्रतिनिधियों के चुनाव का तरीका उनके परामर्श से तय किया गया। अध्याय के पिछले भाग में उन तीनों कारकों पर प्रकाश डाला गया जो संविधान को प्रभावी और संमान के योग्य बनाते हैं। भारतीय संविधान इस परीक्षा में किस हद तक कामयाब होता है ?
आस्था का प्रतीक
संविधान सभा के अस्तित्व में आने से पहले ऐसी संविधान सभा की मांग उठ चुकी थी । इसकी प्रतिध्वनि हमें संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 9 दिसंबर 1946 के अध्यक्षीय भाषण में सुनाई देती है । महात्मा गांधी के कथन को याद करते हुए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि स्वराज का अर्थ है जनता के द्वारा स्वतंत्र रूप से चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से व्यक्त उनकी इच्छा । उन्होंने कहा देश में राजनीतिक रूप से जागरूक सभी वर्गों में संविधान सभा का विचार एक आस्था का प्रतीक बन चुका है।
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