खाद्य मे असुरक्षित या गरीब कौन हैं
यद्यपि भारत में लोगों का एक बड़ा वर्ग खाद्य एवं पोषण की दृष्टि से असुरक्षित है, परंतु इससे सर्वाधिक प्रभावित वर्गों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- भूमिहीन जो थोड़ी बहुत अथवा नगण्य भूमि पर निर्भर हैं,
- पारंपरिक दस्तकार,
- पारंपरिक सेवाएँ प्रदान करने वाले लोग,
- अपना छोटा-मोटा काम करने वाले कामगार और निराश्रित तथा भिखारी।
शहरी क्षेत्रों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित वे परिवार
जिनके कामकाजी सदस्य प्रायः कम वेतन बाले व्यवसायों और अनियत श्रम-बाज़ार में काम करते हैं। ये कामगार अधिकतर मौसमी कार्यों में लगे हैं और उनको इतनी कम मज़दूरी दी जाती है कि वे मात्र जीवित रह सकते हैं ।
सामाजिक संरचना खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा में भूमिका निभाती है
खाद्य पदार्थ खरीदने में असर्मथता के साथ सामाजिक संरचना भी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा में भूमिका निभाती है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के कुछ वर्गों (इनमें से निचली जातियाँ) का या तो भूमि का आधार कमज़ोर होता है या फिर उनकी भूमि की उत्पादकता बहुत कम होती है, वे खाद्य की दृष्टि से शीघ्र असुरक्षित हो जाते हैं।
प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोग खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं
वे लोग भी खाद्य की दृष्टि से सर्वाधिक असुरक्षित होते हैं, जो प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित हैं और जिन्हें काम की तलाश में दूसरी जगह जाना पड़ता है। कुपोषण से सबसे अधिक महिलाएँ प्रभावित होती हैं।
यह गंभीर चिंता का विषय है क्योंकि इससे अजन्मे बच्चों को भी कुपोषण का खतरा रहता है। खाद्य असुरक्षा से ग्रस्त आबादी का बड़ा भाग गर्भवती तथा दूध पिला रही महिलाओं तथा पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों का है।
आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित होते है
देश के कुछ क्षेत्रों, जैसे,
- आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य जहाँ गरीबी अधिक है,
- आदिवासी और सुदूर क्षेत्र,
- प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होने वाले क्षेत्र आदि में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की संख्या आनुपातिक रूप से बहुत अधिक है।
- वास्तव में, उत्तर प्रदेश (पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी हिस्से), बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ भागों में खाद्य की दृष्टि से असुरक्षित लोगों की सर्वाधिक संख्या है।
भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू
भुखमरी खाद्य की दृष्टि से असुरक्षा को इंगित करने वाला एक दूसरा पहलू है। भुखमरी गरीबी की एक अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, यह गरीबी लाती है। इस तरह खाद्य की दृष्टि से सुरक्षित होने से वर्तमान में भुखमरी समाप्त हो जाती है और भविष्य में भुखमरी का खतरा कम हो जाता है।
भुखमरी के दीर्घकालिक और मौसमी आयाम होते हैं। दीर्घकालिक भुखमरी मात्रा एवं / या गुणवत्ता के आधार पर अपर्याप्त आहार ग्रहण करने के कारण होती है। गरीब लोग अपनी अत्यंत निम्न आय और जीवित रहने के लिए खाद्य पदार्थ खरीदने में अक्षमता के कारण दीर्घकालिक भुखमरी से ग्रस्त होते हैं।
मौसमी भुखमरी
मौसमी भुखमरी फसल उपजाने और काटने के चक्र से संबद्ध है। यह ग्रामीण क्षेत्रों की कृषि क्रियाओं की मौसमी प्रकृति के कारण तथा नगरीय क्षेत्रों में अनियमित श्रम के कारण होती है। जैसे, बरसात के मौसम में अनियत निर्माण श्रमिक को कम काम रहता है। इस तरह की भुखमरी तब होती है, जब कोई व्यक्ति पूरे वर्ष काम पाने में अक्षम रहता है।
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