वर्षा ऋतु या मानसून के आगमन पर टिप्पणी/Comment on the arrival of the rainy season or monsoon

वर्षा ऋतु या मानसून के आगमन पर टिप्पणी -

जून के प्रारंभ में उत्तरी मैदानों में निम्न दाब की अवस्था तीर्थ हो जाती है यह दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनो को आकर्षित करता है यह दक्षिण पूर्व व्यापारिक पवनें, दक्षिणी समुद्रों के उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं। चूँकि, ये पवनें गर्म महासागरों के ऊपर से होकर गुजरती हैं, इसलिए ये अपने साथ इस महाद्वीप में बहुत अधिक मात्रा में नमी लाती हैं। ये पवनें तीव्र होती हैं तथा 30 कि०मी० प्रति घंटे के औसत वेग से चलती हैं। सुदूर उत्तर-पूर्वी भाग को छोड़कर ये मानसूनी पवनें देश के शेष भाग में लगभग 1 महीने में पहुँच जाती हैं।



     दक्षिण-पश्चिम मानसून का भारत में अंतर्वाह यहाँ के मौसम को पूरी तरह परिवर्तित कर देता है। मौसम के प्रारंभ में पश्चिम घाट के पवनमुखी भागों में भारी वर्षा (लगभग 250 से०मी० से अधिक) होती है। दक्कन का पठार एवं मध्य प्रदेश के कुछ भाग में भी वर्षा होती है, यद्यपि ये क्षेत्र वृष्टि छाया क्षेत्र में आते हैं। इस मौसम की अधिकतर वर्षा देश के उत्तर-पूर्वी भागों में होती है। खासी पहाड़ी के दक्षिणी शृंखलाओं में स्थित मासिनराम विश्व में सबसे अधिक औसत वर्षा प्राप्त करता है। गंगा की घाटी में पूर्व से पश्चिम की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। राजस्थान एवं गुजरात के कुछ भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

         मानसून से संबंधित एक अन्य परिघटना है, 'वर्षा में विराम'। इस प्रकार, इसमें आर्द्र एवं शुष्क दोनों तरह के अंतराल होते हैं। दूसरे शब्दों में, मानसूनी वर्षा एक समय में कुछ दिनों तक ही होती है। इनमें वर्षा रहित अंतराल भी होते हैं। मानसून में आने वाले ये विराम मानसूनी गर्त की गति से संबंधित होते हैं। विभिन्न कारणों से गर्त एवं इसका अक्ष उत्तर या दक्षिण की ओर खिसकता रहता है, जिसके कारण वर्षा का स्थानिक वितरण सुनिश्चित होता है। जब मानसून के गर्त का अक्ष मैदान के ऊपर होता है तब इन भागों में वर्षा अच्छी होती है। दूसरी ओर जब अक्ष हिमालय के समीप चला जाता है तब मैदानों में लंबे समय तक शुष्क अवस्था रहती है तथा हिमालय की नदियों के पर्वतीय जलग्रहण क्षेत्रों में विस्तृत वर्षा होती है। इस भारी वर्षा के कारण मैदानी क्षेत्रों में विनाशकारी बाढ़ें आती हैं एवं जान एवं माल की भारी क्षति होती है। उष्ण कटिबंधीय निम्न दाब की तीव्रता एवं आवृत्ति भी मानसूनी वर्षा की मात्रा एवं समय को निर्धारित करती है। यह निम्न दाब का क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के ऊपर बनता है तथा मुख्य स्थलीय भाग को पार कर जाता है। यह गर्त निम्न दाब के मानसून गर्त के अक्ष के अनुसार होता है मानसून को इसकी अनिश्चितता के लिए जाना जाता है। शुष्क एवं आर्द्र स्थितियों की तीव्रता, आवृत्ति एवं समय काल में भिन्नता होती है। इसके कारण यदि एक भाग में बाढ़ आती है तो दूसरे भाग में सूखा पड़ता है। इसका आगमन एवं वापसी प्रायः अव्यवस्थित होता है। इसलिए यह कभी-कभी देश के किसानों की कृषि कार्यों को अव्यवस्थित कर देता है।

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