पितृसत्तात्मक प्रभुत्व वाले वैदिक समाज में स्त्रियों की स्थिति | What is patriarchy and the status of women in Indian society

 पितृसत्तात्मक प्रभुत्व वाले वैदिक समाज में स्त्रियों की स्थिति


पितृसत्तात्मक प्रभुत्व वाले वैदिक समाज में स्त्रियों की स्थिति



 ऋग्वैदिक काल में पितृसत्तात्मक सामाजिक संगठन में स्त्रियों की स्थिति के बारे में एकमतता नहीं है। एक पक्ष मानता है कि सामाजिक जीवन में स्त्रियों को पुरुषों के समान प्रतिष्ठा प्राप्त थी । वह धार्मिक कार्यों, सामाजिक उत्सवों व समारोहों में पुरुषों के साथ-साथ भाग लेती थी। 


परिवार में पुत्री की अवहेलना नहीं की जाती थी। इस पक्ष का तर्क है कि ऋग्वेद में ऐसा कोई प्रभाण उपलब्ध नहीं होता है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि समाज में स्त्रियों की स्थिति पुरुषों की अपेक्षाहीन और उनकी अधीनता दर्शाने वाली थी। विश्ववारा, घोषा, अपाला आदि ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों का उदाहरण भी सामने रखा जाता है।


ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति का अध्ययन करने वाले लोगों में एक दूसरी मान्यता भी मिलती । इस पक्ष का मानना है कि ऋग्वैदिक काल की स्त्रियों के संबंध में होने वाले स्तुतिगान की सच्चाई संदेह से परे नहीं है। स्त्रियों की हैसियत उतनी भी सरल नहीं थी, जितनी बताई जाती है। 


प्रजनन प्रक्रिया में स्त्रियों की स्थिति का संकेत 'दुहित्र' पद से स्पष्ट होता है तो बुनाई संबंधी कार्यों में स्त्रियों की भूमिका का बार-बार होने वाले उल्लेख से स्त्री जीवन की वास्तविकता की ओर संकेत मिलता है। ऋग्वैदिक समाज के शुरुआती दिनों में स्त्रियों को उचित सम्मान मिलने का पता चलता है। ऐसा समाज की उत्पादन प्रक्रिया में स्त्रियों की अनिवार्य भागीदारी के कारण माना जा सकता है। धीरे-धीरे समाज का ढाँचा पितृसत्तात्मक होने के साथ-साथ स्त्रियों की स्थिति पुरुषों से कमतर होने लगी। 


पुत्रों, विशेषकर वीर पुत्रों या प्रजा की कामना वाले मंत्र मिलने लगे। पुत्रियों की कामना वाले मंत्र नहीं रचे गये। इंद्र के पुंसत्व की ढेर सारी प्रशंसा मिलती है। कुछ पुत्रों के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखे जाने का उदाहरण मिलता है, जिसे इतिहासकार अनार्यों से ली हुई परंपरा मानते हैं।


उपरोक्त विवरण से ऋग्वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति एक सीमा तक स्पष्ट अवश्य हो जाती है। पितृसत्तात्मक समाज में स्त्री जीवन में कुछ विशेष प्रवृत्तियों का समावेश हो जाता है। पितृसत्तात्मकता के हावी होने का महत्त्वपूर्ण पहलू स्त्री जीवन से जुड़ा हुआ है।


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