जमानत क्या है (what is bail)-
अपराध करने वाले व्यक्ति को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके अदालत के सामने मय अभियोग के पेश किया जाता है। अभियोग का निर्णय अदालत द्वारा किया जाना होता है। यह लंबी प्रक्रिया होती है। इस कारण कानून में यह प्रावधान रखा गया है कि जहां संभव हो वहां अपराधी को न्यायिक हिरासत में रखने के बजाय कुछ शर्तों के अधीन रखते हुए रिहाई प्रदान कर दी जाए। अभियुक्त को रिहाई प्रदान करने के लिए सिक्योरिटी रकम, प्रतिभूति और सुरक्षा रकम को ही सामान्यतया जमानत कहा जाता है। इस प्रकार की जमानत अभियुक्त का कोई परिचित या उसके रिश्तेदार प्रदान करते हैं। तब जमानत पत्रों एवं बंध पत्रों की शर्तों के अनुसार अभुियक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाता है।
अपराध को जमानत के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है। जमानतीय प्रकृति के अपराध और अजमानतीय प्रकृति के अपराध । जमानतीय प्रकृति के अपराध होने पर अभियक्त की जमानत हो जाती है। जबकि अजमानतीय मामलों में जमानत अधिकार स्वरूप नहीं होती है। (भारतीय दण्ड संहिता 1973 के अंतर्गत विभिन्न धाराओं के अध्याय को देखें)
न्यायालय जमानत स्वीकार करते हुए कुछ शर्तों की पालना अभियुक्त से चाहता है। जैसे वह कोर्ट में प्रत्येक पेशी पर उपस्थित होगा। विचारणीय अपराध के मामले में वह गवाहों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने के कार्य नहीं करेगा। न ही वह विचारणीय अपराध के सबूत और साक्ष्य मिटाने के लिए अपनी रिहाई का प्रयोग करेगा। यदि जमानत पत्रों एवं बंध पत्रों की शर्तों की पालना नहीं की जाती तो अभियुक्त को पुनः गिरफ्तार कर लिया जाता है।
कई अजमानतीय मामलों में भी अभियुक्त को जमानत पर रिहा किया जाता है। ऐसे मामलों में कोर्ट अपने विवेक से यह निर्णय करता है। लेकिन मृत्युदण्ड और आजीवन कारावास के अभियुक्त को सामान्यतया जमानत पर रिहाई नहीं मिलती । लेकिन यह अपराध यदि सोलह वर्ष से कम उम्र व्यक्ति द्वारा किसी स्त्री द्वारा, अपंग अथवा शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति द्वारा किए जाते हैं तो अदालत उनकी जमानत स्वीकार कर सकता है। फिर भी मामले की प्रकृति व परिस्थिति को देखते हुए स्वविवेक से अदालत द्वारा निर्णय लिया जाता है।
ऐसे व्यक्तियों को भी जमानत पर नहीं छोड़ा जाता है, जो आजीवन कारावास या सात वर्ष से अधिक की सजा पूर्व में काट चुका है। जिसे दो बार से अधिक प्रकरणों में अजमानतीय अपराध के कारण न्यायालय द्वारा सजा सुनाई जा चुकी है।
जमानतीय प्रकृति के अपराध में यदि व्यक्ति न्यायिक अभिरक्षा में इतना समय गुजार दे कि सामान्य स्थिति में उसकी जमानत पर रिहाई होना संभव था। ऐसे में यह माना जा सकता है कि व्यक्ति निर्धन है और जमानत के आर्थिक तत्वों की पूर्ति नहीं कर पा रहा। ऐसे में कोर्ट विवेक एवं परिस्थितियों के अनुसार निर्णय करते हुए प्रतिभुओं रहित बंध पत्र का निष्पादन करने पर जमानत पर रिहा कर सकती है ।
0 Comments