महापाषाण (megalithic culture) -
महापाषाण संस्कृति का उदय दक्षिण में पाषाण युग के बाद होता है। यूँ तो यह संस्कृति कुछ हद तक भारत के पूर्वी-मध्य और उत्तर-पश्चिम क्षेत्रों में भी पाई जाती है, किंतु दक्षिणी भारत के संदर्भ में इस संस्कृति का विशेष महत्व है।
महापाषाणीय संस्कृति की दो प्रमुख विशेषताएँ हैं--- -
एक तो यह लौह युग से अविरल रूप से जुड़ा हुआ है और दूसरा यह काले एवं लाल मृद्धांडों के आविर्भाव से भी संयुक्त है।
इस युग की पुरातत्व संबंधी वस्तुएँ आवास स्थल और कंब्रगाह दोनों जगहों से प्राप्त होती हैं। कब्रगाह पुरातत्व सामग्री की प्रचुरता के कारण ज्यादा अधिक महत्त्वपूर्ण है। कब्रों में वस्तुओं के रखने का उद्देश्य यही था कि व्यक्ति को मरणोपरांत भी आवश्यक वस्तुएँ यथेष्ट रूप से प्राप्त हों तथा वे प्रकृति की विनाशलीला से भी बची रहें। कब्रगाह में रखी सामग्री से यह स्पष्ट होता है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा के विनष्ट न होने पर लोगों का विश्वास था । लोहे और काली तथा लाल मिट्टी के बर्तनों का महापाषाण काल से विशेष संबंध था। हालाँकि इसका इस्तेमाल उस संस्कृति के पहले तथा बाद में भी होता रहा था। महापाषाण संस्कृति का विकास विश्व के अन्य देशों में भी हुआ था। महापाषाणकालीन लोग साधारणतया पहाड़ की ढलानों पर रहते थे, परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में लोग कृषि का विशेष विकास नहीं कर पाए थे।
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