The reasons for the rise of religious movements in the 6th century BC were more economic than religious

 प्रश्न . “छठी शताब्दी ईसा पूर्व में धार्मिक आंदोलनों के उदय के कारण धार्मिक से अधिक आर्थिक थे।" विवेचन कीजिए।



The reasons for the rise of religious movements in the 6th century BC were more economic than religious

उत्तर - 

ईसा पूर्व छठी सदी में गंगा के मैदानों के मध्य में अनेक धार्मिक सम्प्रदायों का उदय हआ। इस युग के करीब 62 धार्मिक सम्प्रदाय ज्ञात हैं। इनमें से कई सम्प्रदाय पूर्वोत्तर भारत में रहने वाले विभिन्न समुदायों में प्रचलित धार्मिक प्रथाओं और अनुष्ठान-विधियों पर आधारित हैं। इनमें जैन सम्प्रदाय और बौद्ध सम्प्रदाय सबसे महत्व के थे, और इन दोनों का उदय धार्मिक सुधार के परम शक्तिशाली आन्दोलन के क्रम में हुआ है। वैदिकोत्तर काल में समाज स्पष्टत: चार वर्णों में विभाजित था- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। हर वर्ण के कर्तव्य अलग-अलग निर्धारित थे, और ऊपर के दो वर्णों को कुछ विशेषाधिकार दिए गए थे, हालाँकि इस पर भी जोर दिया जाता था कि वर्ण जन्ममूलक हैं। ब्राह्मण जिन्हें पुरोहितों और शिक्षकों का कर्तव्य सौंपा गया था, समाज में अपना स्थान सबसे ऊँचा होने का दावा करते थे। यह स्वाभाविक ही था कि इस तरह के वर्ण-विभाजन वाले समाज में तनाव पैदा हो । वैश्यों और शूद्रां में इसकी कैसी प्रतिक्रिया थी यह जानने का कोई साधन नहीं है, परन्तु क्षत्रिय लोग, जो शासक के रूप में काम करते थे, ब्राह्मणों के धर्म विषयक प्रभुत्व पर प्रबल आपत्ति करते थे, और लगता है कि उन्होंने वर्णव्यवस्था को जन्ममूलक मानने के विरुद्ध एक प्रकार का आन्दोलन छेड़ दिया था। इस प्रकार विविध विशेषाधिकारों का दावा करने वाले पुरोहितों या ब्राह्मणों की श्रेष्ठता के विरुद्ध क्षत्रियों का खड़ा होना नए धर्मों के उद्भव का अन्यतम कारण हुआ, परन्तु इन धर्मों के उद्भव का यथार्थ कारण है पूर्वोत्तर भारत में एक नई कृषिमूलक अर्थव्यवस्था का उदय । इस क्षेत्र की मिट्टी में नमी अधिक है, अतः पूर्व काल के लोहे के बहुत से औजार तो बच नहीं सके, फिर भी कुछेक कुल्हाड़ियाँ लगभग 600-500 ई.पू. के स्तर से निकली हैं। लोहे के औजारों के इस्तेमाल की बदौलत जंगलों की सफाई, खेती, और बड़ी-बड़ी बस्तियाँ संभव हुईं। लोहे के फाल वाले हलों पर आधारित कृषि - मूलक अर्थव्यवस्था में बैल का इस्तेमाल जरूरी था, और पशुपालन के बिना बैल आएँ कहाँ से । परन्तु इसके विपरीत वैदिक प्रथा के अनुसार यज्ञों में पशु अन्धाधुंध मारे जाने लगे। यह खेती की प्रगति में बाधक सिद्ध हुआ। असंख्य यज्ञों में बछड़ों और सांडों के लगातार मारे जाते रहने से पशुधन क्षीण होता गया। मगध के दक्षिणी और पूर्वी छोरों पर बसे कबायली लोग भी पशुओं को मार-काट कर खाते गए, लेकिन यदि इस नई कृषि-मूलक अर्थव्यवस्था को बचाना था तो इस पशुवध को रोकना आवश्यक ही था। ईसा पूर्व छठी सदी में पूर्वोत्तर भारत में हम भौतिक जीवन में हुए परिवर्तनों के विरुद्ध उसी प्रकार की प्रतिक्रिया देखते हैं जैसी प्रतिक्रिया आधुनिक काल में औद्योगिक क्रांति से आए परिवर्तनों के विरुद्ध देख रहे हैं।


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