बात तब की है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में अपना प्रसिद्द भाषण देकर स्वदेश लौट करे थे | पुरे देश में उनके भाषण कि तारीफ हो रही थी | एक दिन उनके आश्रम में एक युवक आया और विवेकानंद से बहस करने लगा | उसका कहना तहत कि शब्दों से कुछ नहीं होता | विवेकानंद ने उसकी बात ध्यान से सुनी |फिर अचानक चेहरे पर क्रोध लेकर बोले -मुर्ख ! तुम्हे कोई बात समझ नहीं आ सकती | तुम उल्लू हो , हद दर्जे के निकम्मे हो |
उनकी बाते सुनकर युवक भड़क गया | बोला - स्वामी जी ! मैंने सुना था कि आप सन्यासी है और सभी से बहुत प्रेम से बात करते है पर आपके मुँह से ऐसे अपशब्द शोभा नहीं देते | उसकी बात सुनकर विवेकानंद मुस्कुराते बोले - मेरी बात का बुरा न मानना , मैं तुम्हे शब्दों का महत्व समझा रहा था | हमारी वाणी शब्दों से ही बनती है | शब्द ही वाणी है | मीठी वाणी के लिए मीठी शब्द भी जरुरी होते है | अब देखो न , इन्ही शब्दों ने तुम्हे एकदम गुस्से में ला दिया | शब्दो से ही हम दूसरों को अपना या पराया बना लेते हैं |
उनकी बाते सुनकर युवक भड़क गया | बोला - स्वामी जी ! मैंने सुना था कि आप सन्यासी है और सभी से बहुत प्रेम से बात करते है पर आपके मुँह से ऐसे अपशब्द शोभा नहीं देते | उसकी बात सुनकर विवेकानंद मुस्कुराते बोले - मेरी बात का बुरा न मानना , मैं तुम्हे शब्दों का महत्व समझा रहा था | हमारी वाणी शब्दों से ही बनती है | शब्द ही वाणी है | मीठी वाणी के लिए मीठी शब्द भी जरुरी होते है | अब देखो न , इन्ही शब्दों ने तुम्हे एकदम गुस्से में ला दिया | शब्दो से ही हम दूसरों को अपना या पराया बना लेते हैं |
अल्फ़ाज़ को सम्भालकर बोलिये
अल्फ़ाज़ में भी जान होती हैं
इन्हीं से दुआ और अज़ान होती हैं
ये दिल के समंदर के वो मोती हैं
जिनसे इन्सान की पहचान होती है
Written by Gulshan jagga
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