दादी और दादा जी- A Motivational Thought

घर से सभी को एक बात बड़ी अच्छी तरह समझनी चाहिए कि जो दादी कि है वो पिता जी की माँ है और जो दादा जी है वो पिता जी के पिता जी है | जब मैं अपने माँ - बाप को बहुत चाहता हु तो मेरे पिता जी भी अपने माँ - बाप को उतना ही चाहते होंगे |

दादी और दादा जी-  A Motivational Thought
दादी और दादा जी-  A Motivational Thought

          मैंने ऐसा महसूस किया है की आजकल घरो में ननसाल के रिश्ते अधिक हावी हो गए है और ददसाल के रिश्ते कहीं दूर होते जा रहे है | आज घरो में बच्चों को मौसी और मौसा की व मामी और मामा जी एवं उनके बच्चों के आने पर ज्यादा ख़ुशी होती है , जबकि चाचा - चाची जी व बुआ - फूफा जी के आने पर वो बात नजर नहीं आती |अधिकांश घरो में परिवार की अन्तरंग बाते , जो भाई और बहन के साथ शेयर होती थी , वे बाते आज साढू (साली का पति ) या साले (पत्नी का भाई ) के साथ होती है |नियम लगता है कि बच्चो के सम्पूर्ण मानसिक विकास के लिए संयुक्त परिवार बहुत जरुरी है , परन्तु इस विकृत सोच के कारण संयुक्त परिवार कहीं टूटकर बिखर गया है | यह एक चिंतन का विषय है | बेचारे पिता कि कहीं दूर बैठे सोचते है - "आज भाई का दिल भाई के लिए क्यों नहीं धड़कता ?"

           एक स्कूल या कॉलेज जाने वाला बच्चा अपनी माँ और पिता को तो खूब चाहता है परन्तु दादा और दादी जी की देखना भी नहीं चाहता | कारन चाहे कुछ भी रहे हो , परन्तु यह बात कही न कही पिता जी के मन को अंदर तक  कचोटती है |
          मैंने कई घरो में देखा है की केवल कुछ दिनों के लिए गांव से आये दादा - दादी का उनके पोता पोती द्वारा शब्दों के तीखे कटाक्षों से उनका बुरा हाल करते है और इन बच्चो का व्यवहार प्रायः इतना गलत होता है की सिर शर्म झुक जाता है |और इससे भी बड़ी बात की ये सब पिता जी के सामने होता है | जरा सोचे , वो पिता जी जो अपने माता - पिता को देवी देवता तुल्य समझकर उनका आदर सम्मान करते थे , आज अपनी पत्नी और बच्चो के अधीन होकर उनकी बेइज़्ज़ती अपने सामने सहते है तो उनके दिल पर क्या बीतती होगी | ऐसी परिस्थितियां चिंता का विषय है | उनकी मनोस्थति पर ध्यान दे |



Written by - Gulshan jagga

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