हादज़ा जनसमूह की विशेषताएं बताईये - Describe the characteristics of the Hadza population
हादज़ा शिकारियों और संग्राहकों का एक छोटा समूह है। ये लोग 'लेक इयासी' एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनी झील के आसपास रहते हैं। पूर्वी हादज़ा का इलाका सुखा तथा चट्टानी है, जहाँ घास (सवाना) , कॉँटेदार झाड़ियां आरु एकासियों के पेड़ बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, परन्तु यहाँ जंगली खाद्य-वस्तुएँ भरपूर मात्रा में मिलती हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ तरह-तरह के जानवर बहुत बडी संख्या में पाए जाते थे। बड़े जानवरों में यहाँ हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, ज़ब्रा, वाटरबक, हिरण, चिंकारा, खागदार जंगली सुअर, बबून बंदर, शेर, तेंदुए और लकड़बग्घे पाए जाते हैं उसी प्रकार छोटे जानवरों में साही मछली (porcupine), खरगोश, गीदड़, कछुए तथा दूसरे प्रकार के जानवर रहते हैं। हादज़ा लोग हाथी को छोड़कर दूसरे सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं और उनका मांस खाते हैं। यहाँ शिकार के भविष्य को कोई खतरा पैदा किए बिना, नियमित रूप से जितना मांस खाया जाता है, उतना संसार के किसी भी ऐसे भाग में नहीं खाया जा सकता, जहाँ ऐसे शिकारी-संग्राहक रहते हैं अथवा निकट भूतकाल में रहते थे।
हजदा जनसमूह क्या खाते है
वनस्पति खाद्य-पदार्थ जैसे कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड के फल, आदि जो आम लोगों को हमेशा आसानी से दिखाई नहीं देते, जलाभाव वाले वर्ष में भी अर्थात अत्यंत सूखे-मौसम में भी बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध होते हैं। वनस्पति खाद्य पदार्थ जो बारिश के छः महीनों में मिलते है वह सुखे के मौसम में मिलने वाली खाद्य वस्तुओं से भिन्न होते हैं। वहाँ खाद्य पदार्थ की कभी कोई कमी नहीं होती। यहाँ पाई जाने वाली सात प्रकार की जंगली मधुमक्खियों के शहद और सूंड़ियों को चाव से खाया जाता है, परन्तु इन वस्तुओं की आपूर्ति मौसम के अनुसार हर वर्ष बदलती रहती है।
हजदा जनसमूह के जगह बनाये जाते है
वर्षा के मौसम में जल-स्रोत व्यापक रूप से देश-भर में मिलते हैं, लेकिन सूखे के मौसम में ये स्त्रोत बहुत कम रह जाते हैं। हादज़ा लोग यह मानते हैं कि यदि अधिक से अधिक 5-6 किलोमीटर की दूरी तक पानी मिल जाए तो उनका काम आसानी से चल सकता है; यही कारण है कि उनके शिविर सामान्य तथा जलस्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किए जाते हैं। देश के कुछ भागों में घास के खुले मैदान हैं, परन्तु हादज़ा लोग वहाँ कभी अपना शिविर नहीं बनाते। ये लोग अपना शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के बीच बनाने को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वहाँ आसानी से भाँति-भाँति के जानवर और वनस्पति खाद्य-पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं।
पूर्वी हादज़ा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति जहाँ कहीं भी चाहे रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है, कहीं पर भी कंदमूल-फल और शहद इकट्ठा कर सकता है और पानी ले सकता है; इन बातों के संबंध में हादज़ा प्रदेश में उन पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।.. हादज़ा प्रदेश में शिकार के लिए असीमित मात्रा में पशु उपलब्ध होने के बावजूद, हादज़ा लोग अपने भोजन के लिए मुख्य रूप से जंगली साग-सब्ज़ियों पर ही निर्भर रहते हैं। उनके भोजन का संभवत: 80 प्रतिशत हिस्सा मुख्य रूप से वनस्पतिजन्य होता है और बाकी 20 प्रतिशत हिस्सा मांस और शहद से सामान्य तथा नमी के मौसम में हादज़ा लोगों के शिविर छोटे और दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं और सूखे के मौसम में पानी के स्रोतों के आसपास बड़े और घने बसे होते हैं।
सूखे के मौसम में भी हादज़ा लोगों के यहाँ खाद्य-पदार्थ
सूखे के मौसम में भी हादज़ा लोगों के यहाँ खाद्य-पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती।" पूरा किया जाता है। हादज़ा जनसमूह "हादज़ा शिकारियों और संग्राहकों का एक छोटा समूह है। ये लोग 'लेक इयासी' एक खारे पानी की विभ्रंश घाटी में बनो झोल के आसपास रहते हैं। पूर्वी हादज़ा का इलाका सुखा तथा चूट्टानी है, जहाँ घास (सवाना) , कॉँटेदार झाड़ियां आरु एकासियों के पेड़ बहुत बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, परन्तु यहाँ जंगली खाद्य-वस्तुएँ भरपूर मात्रा में मिलती हैं। बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यहाँ तरह-तरह के जानवर बहुत बडी संख्या में पाए जाते थे। बड़े जानवरों में यहाँ हाथी, गैंडे, भैंसे, जिराफ, ज़ब्रा, वाटरबक, हिरण, चिंकारा, खागदार जंगली सुअर, बबून बंदर, शेर, तेंदुए और लकड़बग्घे पाए जाते हैं उसी प्रकार छोटे जानवरों में साही मछली (porcupine), खरगोश, गीदड़, कछुए तथा दूसरे प्रकार के जानवर रहते हैं। हादज़ा लोग हाथी को छोड़कर दूसरे सभी प्रकार के जानवरों का शिकार करते हैं और उनका मांस खाते हैं। यहाँ शिकार के भविष्य को कोई खतरा पैदा किए बिना, नियमित रूप से जितना मांस खाया जाता है, उतना संसार के किसी भी ऐसे भाग में नहीं खाया जा सकता, जहाँ ऐसे शिकारी-संग्राहक रहते हैं अथवा निकट भूतकाल में रहते थे।
वनस्पति खाद्य-पदार्थ जैसे कंदमूल, बेर, बाओबाब पेड के फल, आदि जो आम लोगों को हमेशा आसानी से दिखाई नहीं देते, जलाभाव वाले वर्ष में भी अर्थात अत्यंत सूखे-मौसम में भी बहुत बड़ी संख्या में उपलब्ध होते हैं। वनस्पति खाद्य पदार्थ जो बारिश के छः महीनों में मिलते है वह सुखे के मौसम में मिलने वाली खाद्य वस्तुओं से भिन्न होते हैं। वहाँ खाद्य पदार्थ की कभी कोई कमी नहीं होती। यहाँ पाई जाने वाली सात प्रकार की जंगली मधुमक्खियों के शहद और सूंड़ियों को चाव से खाया जाता है, परन्तु इन वस्तुओं की आपूर्ति मौसम के अनुसार हर वर्ष बदलती रहती है।
वर्षा के मौसम में जल-स्रोत व्यापक रूप से देश-भर में मिलते हैं, लेकिन सूखे के मौसम में ये स्त्रोत बहुत कम रह जाते हैं। हादज़ा लोग यह मानते हैं कि यदि अधिक से अधिक 5-6 किलोमीटर की दूरी तक पानी मिल जाए तो उनका काम आसानी से चल सकता है; यही कारण है कि उनके शिविर सामान्य तथा जलस्रोत से एक किलोमीटर की दूरी में ही स्थापित किए जाते हैं। देश के कुछ भागों में घास के खुले मैदान हैं, परन्तु हादज़ा लोग वहाँ कभी अपना शिविर नहीं बनाते। ये लोग अपना शिविर पेड़ों अथवा चट्टानों के बीच बनाने को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वहाँ आसानी से भाँति-भाँति के जानवर और वनस्पति खाद्य-पदार्थ प्राप्त हो जाते हैं।
पूर्वी हादज़ा लोग जमीन और उसके संसाधनों पर अपने अधिकारों का दावा नहीं करते। कोई भी व्यक्ति जहाँ कहीं भी चाहे रह सकता है, पशुओं का शिकार कर सकता है, कहीं पर भी कंदमूल-फल और शहद इकट्ठा कर सकता है और पानी ले सकता है; इन बातों के संबंध में हादज़ा प्रदेश में उन पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है।..
हादज़ा प्रदेश में शिकार
हादज़ा प्रदेश में शिकार के लिए असीमित मात्रा में पशु उपलब्ध होने के बावजूद, हादज़ा लोग अपने भोजन के लिए मुख्य रूप से जंगली साग-सब्ज़ियों पर ही निर्भर रहते हैं। उनके भोजन का संभवत: 80 प्रतिशत हिस्सा मुख्य रूप से वनस्पतिजन्य होता है और बाकी 20 प्रतिशत हिस्सा मांस और शहद से सामान्य तथा नमी के मौसम में हादज़ा लोगों के शिविर छोटे और दूर-दूर तक फैले हुए होते हैं और सूखे के मौसम में पानी के स्रोतों के आसपास बड़े और घने बसे होते हैं। सूखे के मौसम में भी हादज़ा लोगों के यहाँ खाद्य-पदार्थ की कोई कमी नहीं रहती।"
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