पितृसत्ता पर उग्र नारीवादी परिदृश्य का परीक्षण कीजिये।

पितृसत्ता पर उग्र नारीवादी परिदृश्य का परीक्षण कीजिये। 

पितृसत्ता पर उग्र नारीवादी परिदृश्य का परीक्षण कीजिये।


   पितृसत्ता का अर्थ - व्यापक परिभाषा में पितृसत्ता का अर्थ है 'समाज में महिलाओं पर पुरुष प्रभुत्व की अभिव्यक्ति और संस्थागतकरण' । तात्पर्य यह है कि सभी महत्वपूर्ण संस्थानों और निर्णय लेने वाले अधिकारियों ( पुरुषों) द्वारा अपनी सभी शक्तियों को अपने हाथों में रखना और ऐसी शक्ति के उपयोग से महिलाओं को वंचित रखना है। 


मैगी हम्म ने पितृसत्ता को 'पुरुष अधिकार की प्रणाली' के रूप में परिभाषित किया है जो सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संस्थानों के माध्यम से महिलाओं पर अत्याचार करती है। 


माइकल मैनक के अनुसार, 'पितृसत्ता पुरुष वर्चस्व है, जो सामाजिक संबंधों की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें एक वर्ग के रूप में पुरुषों का दूसरे वर्ग के रूप में महिलाओं पर अधिकार है। ये शक्ति संबंध सामाजिक निर्माण हैं न कि जैविक । यह शक्ति आर्थिक हो सकती है जैसे कि सेवा का अधिकार; यौन संबंध जैसे विवाह और मातृत्व; महिलाओं के काम और उपलब्धि के विकास जैसे सांस्कृतिक; वैचारिक जैसे कि प्राकृतिक जैविक प्राणियों के रूप में महिलाओं का प्रतिनिधित्व स्वाभाविक रूप से पुरुषों से अलग है।


 ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं पर पुरुषों के वर्चस्व को विभिन्न प्रकार से सुरक्षित किया गया है जैसे: 


i) यौन उत्पीड़न, 

ii) शिक्षा से वंचित करना, 

iii) यौन क्रियाओं के अनुसार विचलन, 

iv) महिलाओं को एक-दूसरे से विभाजित करना, 

v ) संयम और एकमुश्त जबरदस्ती, 

vi) आर्थिक संसाधनों और राजनीतिक शक्ति तक पहुँच द्वारा, और 

viii) एक समग्र विचारधारा बनाकर कि महिलाएँ पुरुषों से नीचे हैं।


भारत में समाज पितृसत्तात्मक है। सत्ता, नीति निर्माण तथा निर्णय लेने में महिलाओं की हिस्सेदारी कम है। महिलाएँ राजनीति एवं प्रबन्धन में भी पीछे हैं। वैसे उनकी स्थिति अभी भी अत्यन्त पिछड़ी हुई है। लिंगभेद में प्रजनन के संदर्भ में महिलाओं की भूमिका और भी जटिल हो जाती है। 


पुरुष जब वयस्क होता है तो उसकी भूमिका में बहुत कम परिवर्तन नहीं होता है। किन्तु महिला की भूमिका में उसके जीवन में परिवर्तन प्रत्येक दशक से होता रहा है। स्त्री और पुरुषों की संख्या का अनुपात स्त्रियों के प्रतिकूल है। 2011 में भारत में प्रति एक हजार पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की संख्या 940 थी। 


भारत में पुरुषों की संख्या 82 प्रतिशत साक्षर है जबकि सिर्फ 65 प्रतिशत महिलाएँ ही साक्षर हैं। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा में शामिल है - बलात्कार, दहेज के लिए उत्पीड़न, छेड़-छाड़ लैंगिक दुर्व्यवहार, अपहरण, लड़कियों तथा महिलाओं का देह व्यापार आदि । 


भारतीय संविधान में महिलाओं तथा पुरुषों को समान अधिकार दिए जाने का प्रावधान किया गया है। परंतु रोजगार तथा राजनीति की दृष्टि से आज की महिलाएँ अत्यन्त पीछे हैं। जहाँ तक राजनीति की बात है भारत के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों पर महिलाएँ नियुक्त हो चुकी है। निम्न जाति की महिलाओं को लिंग भेद का सामना अधिक करना पड़ता है।


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