नकारात्मक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है-Negative Liberty

नकारात्मक स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है-




नकारात्मक स्वतंत्रता (Negative Liberty ) - प्रारंभिक उदारवाद के सिद्धांत और व्यवहार से स्वतंत्रता की जिस धारणा का जन्म हुआ, उसे नकारात्मक स्वतंत्रता कहा गया। इसकी स्पष्टतम अभिव्यक्ति जॉन लॉक, डेविड ह्यूम, एडम स्मिथ, थॉमस रेन, हरबर्ट स्पेन्सर, बैंथम, जे.एस. मिल जैसे लेखकों की रचनाओं में हुई। बीसवीं शताब्दी में इस धारणा के समर्थक हैं- - माइकल ऑकशॉट, इसाया बर्लिन, मिल्टन फाइडमैन, हायेक, नोजिक आदि ।

      प्रारंभिक उदारवाद का आधार व्यक्तिवाद था। इसने प्रत्येक व्यक्ति को आत्म-जीवित इकाई और समाज को आत्म-संतुष्ट, आत्म-इच्छित एवं स्वार्थपूर्ति में लगे हुए व्यक्तियों का समूह माना। व्यक्ति और इसके हितों को सर्वोपरि मानते हुए प्रारंभिक उदारवाद ने स्वतंत्रता को उन सभी प्रकार के बंधनों का अभाव माना जो व्यक्ति पर उसकी इच्छा के विरुद्ध लगाए गए हैं। संक्षेप में, स्वतंत्रता का अर्थ लिया गया - बंधनों का अभाव। ये बंधन आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक सभी माने गए । राजनीतिक स्तर पर इसका अर्थ थाराज्य की मनमानी शक्ति पर बंधन, समाज के आर्थिक और सामाजिक कार्यों में राज्य का अहस्तक्षेप तथा न्यूनतम राज्य का विचार । आर्थिक स्तर पर स्वतंत्रता का अर्थ था - स्वेच्छाचारिता (laissez-faire) अर्थात् व्यक्ति को आर्थिक मामलों में स्वतंत्र छोड़ देना, मांग और पूर्ति के प्राकृतिक नियम पर आधारित अर्थव्यवस्था में राज्य द्वारा किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप का अभाव तथा इस विचार पर मिल का प्रसिद्ध लेख 'On Liberty' (1859) स्वतंत्रता पर लिखा गया आज तक का उत्तम और अत्यधिक संवेदनशील लेख माना जाता है। यह विचाराभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए शक्तिशाली और भावपूर्ण अनुरोध है। मिल ने व्यक्ति की स्वतंत्रता में केवल राज्य का ही नहीं, बल्कि समाज, जनमत और रीति-रिवाजों का हस्तक्षेप भी अनुचित माना।

             कार्य करने की स्वतंत्रता के संदर्भ में मिल ने व्यक्ति की गतिविधियों को दो भागों में बाँटा-वे कार्य जिनका सकारात्मक प्रभाव दूसरों पर पड़ता है तथा वे कार्य जिनका नकारात्मक प्रभाव दूसरों पर पड़ता है। आत्म-प्रभावी कार्यों में मिल ने संपूर्ण स्वतंत्रता का समर्थन किया। व्यक्ति के केवल उन्हीं कार्यों पर सीमाएँ लगाई जा सकती हैं जिनका प्रभाव दूसरों पर पड़ता है। स्वयं-प्रभावी कार्यों के लिए समाज को चाहिए कि वह व्यक्ति को अकेला छोड़ दे। इनमें मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्मा की स्वतंत्रता, चिंतन, भावना, धर्म, नैतिकता आदि के बारे में मत, अपने जीवन के उद्देश्य, व्यवसाय, विवाह आदि की स्वतंत्रता को निहित किया।

       व्यापक स्तर पर, मिल के विचारों को नकारात्मक माना जाता है। उसने व्यक्ति के स्वयं प्रभावी कार्यों पर समाज अथवा राज्य के हस्तक्षेप को गलत माना, क्योंकि उसके विचार में सभी प्रकार के बंधन बुरे हैं। व्यक्ति उन कार्यों के लिए समाज के प्रति जिम्मेदार नहीं है जिनका संबंध उसके अपने से है। समाज की भलाई इसी में है कि वह व्यक्ति को आत्म-विकास का पूरा अवसर दे । स्वतंत्रता बंधनों के अभाव में है। व्यक्ति के लिए उत्तम यह है कि उसे अपना सुख अपनी मर्जी से ढूँढने के लिए अकेला छोड़ दिया जाए।

          यद्यपि व्यक्ति के आत्म-प्रभावी और समाज प्रभावी कार्यों का अंतर बाद में आने वाले लेखकों, जैसे- ग्रीन, हॉबहाऊस, लास्की, बार्कर आदि ने स्वीकार नहीं किया तथापि मिल का महत्त्व इस तथ्य पर बल देने में है कि सामाजिक और राजनीतिक उन्नति बहुत हद तक व्यक्तिगत क्षमताओं और स्वतंत्र चयन पर निर्भर करती है। मिल का यह दृढ़ विश्वास था कि राज्य की शक्ति में किसी भी प्रकार की वृद्धि, चाहे सरकार का स्वरूप कोई भी हो, व्यक्ति की स्वतंत्रता के विरुद्ध है। जोर-जबरदस्ती की शक्ति के अंतर्गत किया जाने वाला कोई भी कार्य व्यक्ति के लिए चयन का अवसर कम कर देता है जिसके परिणामस्वरूप उसकी स्वतंत्रता का उल्लंघन हो जाता है।

    यद्यपि स्वतंत्रता की नकारात्मक धारणा बीसवीं शताब्दी में सकारात्मक में बदल गई, तथापि कुछ समकालीन चिंतकों ने नकारात्मक धारणा को पुनः स्थापित करने की कोशिश की है। इसमें ऑकशॉट, बर्लिन, फ्राईडमैन, नोजिक, हाएक आदि के नाम लिए जाते हैं ।


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