आज मन बड़ा ही खुश था घर जो जाना था पर कम्बख्त ये कॉलेज कि ये बस हॉस्टल के लिए रवाना कब होगी | ना ही इस बस के चलने का कुछ तय था और न ही मेरे घर जाने का... वैसे भी हमे कानपुर तक का सफर बस से ही तय करना था इसलिए सब कुछ अंत में ही तय होता था कि कब घर जाना है | वैसे भी हॉस्टल लाइफ होती ही कुछ ऐसी है कि बस अपने हिसाब से सब करना होता है कब घर जाना है कब कॉलेज..
मेरा सफर - A Story of Every Student Hostel Life |
अरे कॉलेज जाने का तो तब पता चलता है जब हम उठते है अब आप सब सोच रहे होंगे की उठने से कॉलेज जाने का क्या सम्बन्ध अरे भाई अगर टाइम से उठ गए तो जाना है वरना सो तो रहे ही है खैर समय रहते ही बस हॉस्टल की तरफ चल दी | अच्छा घर जाने की बड़ी ही चाह रहती है फिर भले ही वहां जाकर डंडे ही पड़े पर उसकी भी अलग बात है माँ का प्यार |जब हॉस्टल पहुंचे तो मेरी सहेली नूर जो जल्दी हॉस्टल आने के चक्कर में प्राइवेट बस से चली आयी थी वो रो रही थी इस बात पे नहीं रो रही थी कि हम भी समय पे पहुंच गए थे बल्कि इस बात पर कि उसका लैपटॉप बंद होने का नाम नहीं ले रहा था फिर जब आलिया आई तो उसने लैपटॉप बंद किया | अच्छा नूर के लैपटॉप की एक खासियत थी की उसमे पढाई के अलावा सब काम होता था और जब भी पढाई के लिए उसका इस्तमाल करना होता था तो बंद हो जाता था | सबसे ज्यादा अच्छे से काम तो मूवी देखते वक़्त करता था |
मेरा सफर - A Story of Every Student Hostel Life |
इधर मैं बहुत खुश थी की जल्दी घर जाने की वजह से वो कॉलेज बस से न आकर प्राइवेट बस से आई और 20 रू बर्बाद किये पर घर के लिए सब एक साथ निकले | चलो जो हुआ अच्छा हुआ हमने अपने बैग में सामान रखा और निकल गए बस अड्डे की ओर| साथ में मेरे आरती और पिया थी जिसमे आरती तो वहीं की थी और पिया मेरे साथ कानपुर तक जाने वाली थी |जैसे ही बस स्टैंड के लिए हम निकले तो अचानक से याद आया की हमारी एक किताब जो अपनी एक दोस्त को देनी थी हॉस्टल के रूम में ही भूल गए थे अब गुस्सा तो बहुत आ रहा था पर किसपे उतरे इसलिए अपनी दोस्त को फोन करके कहा कि किताब कि जरूरत हो तो ताला तोड़ दे और किताब निकल ले | जैसे तैसे हम बस स्टैंड पहुंचे |
जैसे ही बस स्टैंड पहुंचे तो कानपुर की बस ढूंढने लगे फिर हम कानपुर जाने वाली एक बस में बैठ गए पर बस चलने का नाम नहीं ले रही थी ड्राइवर से पूछने पे पता चला कि बस थोड़ी देर में चलेगी | हम भी इंतज़ार करने लगे 2 घंटे हो गए पर बस जरा सा भी नहीं हिली अब हम परेशान होने लगे और ड्राइवर से फिर पूछा 'कितनी देर और ' ड्राइवर का वही कहना बस थोड़ी देर और |हमारे सब्र का बांध टूट रहा था | हमारे पास ही लखनऊ के एक भाई साहब बैठे थे जिन्हे भी हमारे तरह जल्दी में थे | वो लखनऊ वाले भाई जी धीरे से बस से उतरे और आगे वाली बस में जाकर पता किया | तब पता चला की आगे वाली बस पहले जाएगी फिर क्या लखनऊ हमने जल्दी से अपना सामान किया और लखनऊ वाले के पीछे चल दिए | जब आगे वाली बस में पहुंचे तो वो सवारी से भरी थी और चलने वाली थी हम भी जल्दी से उस बस में चढ़ गए| |सीट पे बैठ कर सांस में सांस आई | थोड़ी ही देर में बस चल दी | अब एक नयी मुसीबत लखनऊ वाले भाई साहब ने प्रश्नो की बारिश हम पे कर दी जैसे कहा पढ़ते हो कहा रहते हो क्या नाम है | हमने भी उन्हें सब बता दिया पर कुछ बाते बदल दी जैसे कॉलेज का नाम गलत बताया और अपने घर का पता भी.... थोड़ी देर में वो भला मानुस पीछे की सीट पे जाकर सो गया हम भी खुश होकर अपनी बस के चलने का इंतज़ार करने लगे |
थोड़ी ही देर म बस चल दी हम अब बैठ के कानपुर पहुंचने का इंतज़ार करने लगे | रात के लगभग 3 बजे २-४ पुलिस वाले बस में चढ़े और कुछ ढूंढने लगे कुछ ना मिलने पर उन्होंने हमें बताया की कुछ बदमाश टाइप आदमी इधर कही भागे थे हो सकता है किसी बस में चढ़ गए हो इसलिए जाँच पड़ताल कर रहे है |पुलिस वालो के मुख से ये शुभ समाचार सुनने से पहले बस के सब यात्री मुझे बड़े ही सरीफ लग रहे थे अब वो ही यात्री एक से बढ़कर एक गुंडे लग रहे थे चलो किसी तरह हमने खुद को सम्हाला और अंदाजा लगाया की ६ बजे तक तो पहुंच ही जायेगे | हम सोच ही रहे थे की तभी अचानक से बस रुकी बहार देखा तो पैट चला एक ट्रक ज्यादा बजन की वजह से फंस गया है और इस वजह से रास्ता जाम हो गया है ये सब देखकर हमने अपने सिर पे हाँथ रख लिया लो गयी भैस पानी में....
जैसे ही बस स्टैंड पहुंचे तो कानपुर की बस ढूंढने लगे फिर हम कानपुर जाने वाली एक बस में बैठ गए पर बस चलने का नाम नहीं ले रही थी ड्राइवर से पूछने पे पता चला कि बस थोड़ी देर में चलेगी | हम भी इंतज़ार करने लगे 2 घंटे हो गए पर बस जरा सा भी नहीं हिली अब हम परेशान होने लगे और ड्राइवर से फिर पूछा 'कितनी देर और ' ड्राइवर का वही कहना बस थोड़ी देर और |हमारे सब्र का बांध टूट रहा था | हमारे पास ही लखनऊ के एक भाई साहब बैठे थे जिन्हे भी हमारे तरह जल्दी में थे | वो लखनऊ वाले भाई जी धीरे से बस से उतरे और आगे वाली बस में जाकर पता किया | तब पता चला की आगे वाली बस पहले जाएगी फिर क्या लखनऊ हमने जल्दी से अपना सामान किया और लखनऊ वाले के पीछे चल दिए | जब आगे वाली बस में पहुंचे तो वो सवारी से भरी थी और चलने वाली थी हम भी जल्दी से उस बस में चढ़ गए| |सीट पे बैठ कर सांस में सांस आई | थोड़ी ही देर में बस चल दी | अब एक नयी मुसीबत लखनऊ वाले भाई साहब ने प्रश्नो की बारिश हम पे कर दी जैसे कहा पढ़ते हो कहा रहते हो क्या नाम है | हमने भी उन्हें सब बता दिया पर कुछ बाते बदल दी जैसे कॉलेज का नाम गलत बताया और अपने घर का पता भी.... थोड़ी देर में वो भला मानुस पीछे की सीट पे जाकर सो गया हम भी खुश होकर अपनी बस के चलने का इंतज़ार करने लगे |
थोड़ी ही देर म बस चल दी हम अब बैठ के कानपुर पहुंचने का इंतज़ार करने लगे | रात के लगभग 3 बजे २-४ पुलिस वाले बस में चढ़े और कुछ ढूंढने लगे कुछ ना मिलने पर उन्होंने हमें बताया की कुछ बदमाश टाइप आदमी इधर कही भागे थे हो सकता है किसी बस में चढ़ गए हो इसलिए जाँच पड़ताल कर रहे है |पुलिस वालो के मुख से ये शुभ समाचार सुनने से पहले बस के सब यात्री मुझे बड़े ही सरीफ लग रहे थे अब वो ही यात्री एक से बढ़कर एक गुंडे लग रहे थे चलो किसी तरह हमने खुद को सम्हाला और अंदाजा लगाया की ६ बजे तक तो पहुंच ही जायेगे | हम सोच ही रहे थे की तभी अचानक से बस रुकी बहार देखा तो पैट चला एक ट्रक ज्यादा बजन की वजह से फंस गया है और इस वजह से रास्ता जाम हो गया है ये सब देखकर हमने अपने सिर पे हाँथ रख लिया लो गयी भैस पानी में....
मेरा सफर - A Story of Every Student Hostel Life |
HaHahahahahahaha
1 Comments
the story has taken me back to those golden years of my life...nice story
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