गुरु की महिमा-एक अनोखी कविता | A Hindi Poem |
कंप्यूटर जी , कंप्यूटर जी !
हमको जरा बताओ सर जी !
कठिन जटिल से प्रश्नो को भी
कैसे हल तुम कर देते हो ?
कैसे छोटी सी गागर में
पूरा सागर भर देते हो ?
अच्छे अच्छे खेल दिखाते
दुनिया भर से बात कराते
सौ दिमाग़ का इक दिमाग़ हो
अलादीन का तुम चिराग हो
इतने सरे प्रश्न कर दिए
बोल पड़े तब कंप्यूटर जी
स्वयं नहीं मैं करता सब कुछ
नहीं चलाता अपनी मर्जी
प्रोग्राम जो भरा गुरु ने
उतना ही मैं कर पता हूँ
उससे बहार लेश मात्र भी
नहीं कहीं भी जा पाता हूँ
बिना गुरु के ज्ञान न होता
यह सिद्धांत अटल ही मानो
तुम भी ऊँचे उठ सकते हो
गुरु की महिमा को पहचानो ||
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