क्या है मेरे पास ?- जीवन की सच्चाई || a motivational story

ठंडी शाम थी मैं अपने काम से वापस लौट रहा था , सड़क के किनारे अपनी मोटरसाइकिल को रोककर पास में ही खड़े मूमफली वाले से मूमफली खरीदने लगा , तभी पास ही मौजूद एक बालक पर मेरी नजर पड़ी वो यही कोई 12 - 13 साल का मासूम बच्चा था जो अपनी ही धुन में खोया हुआ था |


 फिर मेरी नजर उसके पैरो पर पड़ी वो विकलांग था , स्वाभाविक रूप से मेरे मन में दया भाव उत्पन्न हुआ |तभी मैंने खुद को समझने की कोशिश की कि दया भाव क्यों? इस बालक को तो प्यार और सम्मान की आवश्यकता है न कि दया की | तभी उस बालक ने एक दूसरे बालक को आवाज दी ऐसा लग रहा था कि वो उसके मोहल्ले का मित्र होगा | वह उस दूसरे बालक से बात करने लगा और मेरे विचार भी उसके प्रति बलदलने लगे |वो भी आम बच्चा है जो अपनी ज़िन्दगी जी रहा है  , उसकी दिनचर्या भी बाकी बालको की तरह ही है |
        मैं वहा से चल दिया | मेरे मन में यही विचार चलता रहा की हम मनुष्य में यह कैसी होड़ है , जो हम समझ नहीं पाते की हमारे पास क्या है ? वास्तिविकता ये है कि जो दिव्यांग बालक या व्यक्ति है वो भी अपने जीवन में सफल हुए है किसी आम इंसान से पीछे नहीं है ना जाने कैसे कैसे कीर्तमान बना लिए है | 
    शायद तन और मन से विकलांग होना अलग - अलग होता है | लोग जो शारीरिक रूप से समर्थ होते है वो हमेशा ये सोच के रोते रहते है - आखिर मेरे पास है ही क्या ? शायद आप मेरा आशय समझ गए है |

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