शिष्य का कर्तव्य - एक अनोखा रिश्ता || A True Relation

एक उत्तम समाज के निर्माण कि बिना गुरु के कल्पना करना भी व्यर्थ है | परन्तु उत्तम समाज के निर्माण हेतु गुरु को निष्काम एवं शिष्य को आज्ञाकारी एवं समर्पित भाव का होना जरुरी है | अपने गुरु कि आज्ञा का पालन करके समर्पित भाव का होना जरुरी है | अपने गुरु कि आज्ञा का पालन करके समर्पित भाव से जो शिष्य कार्य करता है , कोई बड़ी बात नहीं कि वह अपने गुरु से भी आगे निकलकर ध्रुव तारे की जगह चमकता है |साथ साथ में वह अपने गुरु का नाम भी रोशन करता है | वर्तमान में इस प्रसंग के साक्षात उदाहरण ओलम्पिक के पदक जीतने वाले पहलवान सुशील कुमार गुरु सतपाल जी तो स्वयं ही प्रसिद्ध है , परन्तु निशानेबाज अभिनव बिंद्रा एवं मुक्केबाज विजेंद्र सिंह ने अपने गुरूजनों को विश्व से परिचित करवा दिया | इसके पीछे ज्ञान लेने वाले शिष्य की कर्तव्यनिष्ठा सबसे मजबूर होनी चाहिए , जिसके उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है |


      एक बार सिकंदर और उसके गुरु अरस्तु घने जंगल में से कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक पानी से उफनता हुआ बरसाती नाला पड़ा | सिकंदर सदा गुरु अरस्तु की आज्ञा का पालन करते थे , परन्तु आज गुरु - शिष्य में बहस हो गयी की नाला मैं पहले पार करूँगा | पहले पार करने वाला पानी में बाह भी सकता था .....|और फिर सिकंदर ने नाला पहले पार किया |
         पार पहुँच कर गुरु अरस्तु ने सिकंदर से कहा कि आज पहली बार मेरी बात न मानकर तुमने मेरा अपमान किया है - ऐसा क्यों ?
         सिकंदर में गुरु अरस्तु के आगे घुटने तक कर , अपने कान पकड़ कर नदी मांगते हुए कहा - "नहीं गुरुवार ! ऐसा न कहें - ऐसा करना तो मेरा कर्तव्य था | " गुरु अरस्तु में पूछा - क्यों ?
           सिकंदर ने कहा नाले का अनुमान नहीं था की वो कितना गहरा है | अगर गुरु अरस्तु रहेगा तो हजार सिकंदर पैदा हो जायेगे , पर हजार सिकंदर भी मिल्लर एक अरस्तु नहीं बना सकते | गुरु अरस्तु सिकंदर की बात सुनकर कृतकृत्य हो गए | तो जीवन में उन्नति के लिए सबसे जरुरी है - अपने गुरु के प्रति समर्पित भाव जिससे गुरु शिष्य दोनों की तरक्की होती है |



                     Written by - Gulshan jagga

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