Essay on Democracy in India
Essay on Democracy in India |
हमारे देश का शासन संसदीय लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के तहत चलाया जाता है | चल रहा है| लोकतंत्र का मूल आधार है लोग मत अर्थात जन्नत जन्नत अर्थात जनादेश लोकतंत्र और लोकमत की चर्चा चुनाव के समय बहुत होती है, चुनाव के पूर्व अनुमानों का सिलसिला चलता है |और चुनाव के बाद परिणामों के विश्लेषण की होड़ लगती है| किंतु इस होड़ और दौड़ में लोकतंत्र और लोकमत की उन मूल प्रवृत्तियों को अनदेखा कर दिया जाता है, जो केवल वर्तमान अतीत और भविष्य का संकेत ही नहीं देती उनका निर्णय भी करती है, लोकतंत्र में लोक और तंत्र तथा लोकमत में लोग और मत का वैशिष्ट्य जाने विचारे बिना अपनी बातें कह दी जाती हैं|
बात लोकमत किसान की गणना और लोकतंत्र की शासकीय प्रक्रिया पर आकर ठिठक या रुक जाती है | क्योंकि हमने अपने लोकतंत्र का आदर्श इंग्लैंड को माना है इसलिए हम इंग्लैंड में विकसित इस पद्धति का दुष्परिणाम भी भोग रहे हैं | लोकतंत्र का विनिमय और नियंत्रण लोकमत से होता है, लेकिन लोकमत का परिष्कार और संस्कार करने वाले करते रहने का कार्य भी तो कोई करता होगा या किसी को करना चाहिए, कि नहीं लोकतंत्र का परिष्कार लोकसत्ता द्वारा लोकतंत्र का विनिमय और निर्देशन करने में उसे लोग हितकारी बनाकर रखने की चिंता चिंतन और व्यवस्था के बाद का महत्व शासन तंत्र का संचालन करने की तुलना में इसीलिए अधिक है | कि इसके अभाव में शासक शासन प्रशासन संवेदन शून्य क्रूड स्वार्थी पतित और निरंकुश हो सकता है, यह सभी जनहित के विरुद्ध कार्य कर सकते हैं |
भारत विश्व का एक अति प्राचीन देश और राष्ट्र है, यही सबसे लोकतांत्रिक और गढ़ राज्य शासन व्यवस्था का विकास हुआ था |अथर्ववेद में इसका प्रमाण है, यहां राजा और राजतंत्र को कानून बनाने का अधिकार नहीं था| उसे केवल धर्मानुसार शासन करने अथवा चलाने का अधिकार था और वह अधिकार अधिकार कम कर्तव्य अधिक होता था |
भारतीय परंपरा और पश्चिमी लोकतांत्रिक परंपरा में भी सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों विशेष रूप में विधायकों और मंत्रियों के व्यक्तिगत जीवन और सार्वजनिक जीवन को अलग अलग कर नहीं देखा जाता, जिस व्यक्ति का व्यक्तिगत जीवन भ्रष्ट है| उसका सार्वजनिक जीवन शुद्ध नहीं हो सकता, इसीलिए ब्रिटेन और अमेरिका में चर्चित रुजवेल्ट आज ऐसे शासकों को जिनका व्यक्तित्व व्यक्तिगत जीवन अति निर्मल था विशेष मान दिया गया है |
स्वतंत्रता के बाद भारत में भ्रष्टाचार बढ़ने का कारण सेक्युलर वाद के नाम पर अपनाई गई गलत शिक्षा नीति और धर्म तथा मजहब के सही अर्थों के संबंध में अनभिज्ञता तथा अनुज कर उन्हें गलत करने की नीति है | किसी भी मजहब को ना मानने वाला व्यक्ति भी धर्म का धर्म आता हो सकता है | जबकि धर्म में निहित मूल्यों को अपने जीवन में धारण ना करने वाला बड़े से बड़ा मुल्ले मौलवी पोप और पुजारी धार्मिक और भ्रष्ट आवश्यकता है| इसीलिए भारतीय अथवा हिंदू राज्य पद्धति के अनुसार राजा का राजतिलक करते समय उसे कहा जाता था , कि तू प्रजा का शासक है, परंतु धर्म तुम्हारा शासक धर्म है, तुम्हें धर्मानुसार आचरण करना होगा, धर्म का दंड तुम्हारे ऊपर रहेगा
वर्तमान परिस्थितियों को देखकर लगता है, कि 5000000 में ही हमारा लोकतंत्र थक गया है| बुढ़ापे के सारे लक्षण उभर कर आ गए हैं , सभी अंग ऐसे सिथिल पड़ गए हैं ,कि उनमें सामान्य उपचार से किसी सुधार की गुंजाइश ही नहीं दिखाई दिखाई देती लोग कहते हैं , कि पिछले दशक के दो-तीन साल घोटालों के साल रहे हैं, साथ ही वे इसे न्यायिक सक्रियता का दौर भी कहने लगे हैं | दोनों का दरअसल चोरी चोली दामन का संबंध है, यह सभी घोटाले इन्हीं दो-तीन सालों में ही हुए पहले से होते हो रहे हैं | बिहार का चारा घोटाला हो खूब भाई का मामला हो या फिर हवाला कांड हो सभी की जड़ें बरसों पहले ही जमी थी जिस राज्य में जयप्रकाश नारायण के बेस्ट आचार कुशासन और अधिनायक अधिनायक वादी प्रवृत्तियों के खिलाफ जोरदार आंदोलन चलाया था | राजनीतिक और प्रशासन को स्वच्छ बनाने का संकल्प लिया था वहीं राज्य भ्रष्टाचार कुशासन और हिंसा का प्रतीक बन गया है |
कुछ आशावादी लोग कहते हैं, कि कम से कम अदालतें अपनी भूमिका तो निभा रही हैं | यह एक संस्था है , जिसमें आम जनता की उम्मीद जगी है, लोगों की इच्छा है, कि अदालतें अपनी सक्रियता जारी रखें अंग्रेजी का मुहावरा है कि इच्छाएं अगर घोड़े होते तो विपन लोग उनकी सवारी करते हवाला कांड को ही ले शुरू में लगा था कि अदालतों की फटकार खाकर खुफिया ब्यूरो आनन-फानन में राजनीतिक दिग्गजों को जेल की हवा खिलाई गई कुछ आभास से स्वयं अदालत में भी दिया है लेकिन क्या अब तो बरस भी गुजर गए लेकिन हम लोग वहीं का वहीं उनमें से बहुत से चुनाव जीतकर फिर आ गए कुछ तो मंत्री भी बने |
हमारी अवस्था हवाला कांड के कच्चे पक्के सबूतों को झूठा ही पाई थी कि घोटालों की बाढ़ आ गई चारों और फैलाने की क्षमता तो उसमें है | नहीं , चादर है इतनी छोटी है, कि सिर ढक ले तो पांव नंगे होते हैं, ढकते हैं, तो सिर नंगा होता है | हमारे पास इतने सारे मामलों को तेजी से निपटाने के लिए आदमी कहां है, हर राज्य में होने वाली छोटी बड़ी घटना में खुफिया ब्यूरो द्वारा जांच कराने की मांग की जाती है |
यह प्रवृत्ति एक गंभीर रोग की ओर इशारा करती है सभी राज्य अपने यहां सभी घटनाओं की जांच केंद्रीय एजेंसी से क्यों करवाना चाहते हैं, वहां की सरकारें चाहती हो या नहीं वहां का विपक्ष मांग करता ही रहता है | क्या जालसाजी हत्या या दंगा फसाद की जांच करना राज्यों का दायित्व नहीं है है, तो क्या यह माना जाए कि उनकी जांच एजेंसियां पुलिस और नौकरी चाहिए इस लायक रही है, नहीं कि वे निष्पक्ष जांच कर सके जो हालात हैं, उनमें मानना तो यही पड़ेगा| सभी को चुनाव आएगा, आयोग से उम्मीद थी लेकिन चुनाव आयोग की सक्रियता का बुलबुला जल्दी ही फूट गया|
यदि समय रहते भ्रष्टाचार पर रोक नहीं लगाई गई, तो ना केवल लोकतंत्र अपितु देश की एकता और सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी | इसीलिए देश के मनीषियों और राष्ट्रीय तहसील को भ्रष्टाचार की जड़ में जाना चाहिए | उसके विभिन्न आयामों को समझना चाहिए और इसे खत्म करने के लिए दलगत भावना से ऊपर उठकर समन्वित पग उठाने के लिए जमीन तैयार करनी चाहिए |
सबसे पहले आवश्यकता राजनीति में भ्रष्टाचार लोगों को बोलबाला खत्म करने की है, जब तक देश का प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री और राजनेता भ्रष्टाचार के घेरे में रहेंगे कोई प्रयत्न सफल नहीं होगा अभी सभी लोग सामने मानने लगे हैं | कि यदि देश के पहले प्रधानमंत्री सरदार पटेल होते तो स्थिति सर्वथा भिन्न होती परंतु जो बीत गया उस पर रोने से कुछ बनेगा नहीं |
देश में आज भी अच्छे और भले व्यक्ति हैं , परंतु भ्रष्ट ने राजनेताओं ने उन्हें राजनीति से खदेड़ रखा है ,या हारे हाशिए पर रखा है| फल स्वरुप अच्छे लोग राजनीति में आने से घबराने लगे हैं | यह स्थित बदलनी होगी अच्छे लोगों को आगे लाने का प्रयत्न होना चाहिए| राजनीति को कोसने से काम नहीं चलेगा , शासन तो राजनीति के द्वारा ही चलेगा, इसीलिए राजनीति को शुद्ध करना होगा, इसमें अच्छे लोग आगे लाने होंगे |
यदि देश के मतदाता है, यह मन बना ले कि किसी भ्रष्टाचारी अपराधी शराबी और व्यभिचारी को या किसी ऐसे व्यक्ति को जिस पर हत्या के मामले में संदेह की उंगली उठती हैं | जीतने नहीं दिया जाए, और प्रत्याशियों के व्यक्तिगत जीवन की छानबीन भी की जाएगी, तो चुनाव के बाद देश की राजनीति को कुछ हद तक शुद्ध करने का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा, इसका प्रभाव सब पर पड़ेगा |
साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में नैतिक शिक्षा को महत्व देने आर्थिक नीतियों को राष्ट्र की परंपराओं परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुरूप ढालने और जन जन के मानस के भारतीय करण करने के लिए अभियान चलाने की आवश्यकता है |
अतः चुनावों में सदाचार और सदाचारी लोगों को प्रमुखता देने की ओर भी ध्यान देना होगा | , यह संतोष का विषय है, कि इस दिशा में कुछ मनीषियों और संतों ने सोचना शुरू किया है, इस सोच को भ्रष्टाचार के विरुद्ध और सदाचार के पक्ष में जन जागरण अभियान का ठोस रूप दिया जाना चाहिए ||
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