पेचिश और फूड प्वाइजनिंग में अंतर - Difference Between Dysentery and Food Poisoning
पेचिश और फूड प्वाइजनिंग में अंतर - Difference Between Dysentery and Food Poisoning |
पेचिश
इसमें रोगी को श्लेष्मा और खून के साथ दस्त, उदरीय वेदना और ज्वर होता है| उल्टी भी हो सकती है, यह बीमारी दो प्रकार की होती है ,-
बैसीहरी पेचिश और अमीबिक पेचिश इन दोनों में अंतर की जांच से किया जा सकता है, बैसीलरी पेचिश झींगा, फ्लेक्शनर या सीनी कीटाणुओं से हो सकती है| जबकि अमीबिकी पेचिश एंटी अमीबा हिस्टोलिटिका नामक सूक्ष्म जीवाणु के कारण होती है दोनों प्रकार के पेचिश मक्खियों और दूषित पानी के कारण होती है
पेचिस का उपचार
अगर रोगी को उल्टी नहीं हो रही हो तो, उसे O R S का घोल तथा ग्लूकोज और लवण का पानी मिलाकर मुंह में दिया जा सकता है, उल्टी होने की स्थिति में नस के जरिए ग्लूकोज और लवण का पानी दिया जा सकता है, इसके अलावा बेसिलेरी पेचिश के लिए ट्राइमेथोप्रेम - सल्फामेंथाजोल या नारफ्लॉक्ससीन और अमीबिक पेचिश के लिए मेट्रोजोल या टिनेडिजोल दवा दी जा सकती है, अगर पेचिश का ठीक से इलाज न किया जाए, तो वह चिरकारी रोग बन जाता है|
अमीबा के सिस्ट वाली अवस्था को नष्ट करना बहुत कठिन होता है| इसीलिए लक्षणों के न रहने पर भी इलाज तब तक चलते रहना चाहिए | जब तक की रोगाणु शरीर से पूरी तरह से नष्ट नहीं कर दिए गए , ऐसा न करने पर फिर परेशानी हो सकती है |
अगर इन सब बातों का ध्यान रखा जाए तो काफी हद तक इन बीमारियों से बचा जा सकता है |
फूड प्वाइजनिंग
गर्मियों में खासकर बच्चों में फूट प्वाइजनिंग एक आम समस्या है , गंदे हाथों से खाद्य पदार्थों को छूने और खराब हो चुके, खाद्य पदार्थों को खाने से हानिकारक जीवाणु और विषैले पदार्थ पाचन तंत्र में चले जाते हैं , ऐसा आमतौर पर आलू के सलाद, फ्राई किए हुए चावल, मांस, चिकन, मछली, अंडे से बने खराब हो चुके व्यंजनों को खाने से होता है |
ग्रीष्म और वर्षा ऋतु अर्थात मई - जून और जुलाई माह में इस रोग का प्रकोप इस कारण अधिक होता है | क्योंकि इन महीनों में इसके जीवाणु अधिक पनपते हैं , साथ ही कटे हुए फल, सब्जियां , मिठाइयां, एवं अन्य खाद्य पदार्थ जल्दी खराब हो जाते हैं| मक्खी और मच्छर इनके जीवाणुओं को एक खाद्य पदार्थ से दूसरे खाद्य पदार्थ तक ले जाते हैं| जब जीवाणुओं के संक्रमित खाद्य पदार्थ को कोई व्यक्ति खाता है, तो वह खाद्य विषाक्तता का शिकार हो जाता है|
लक्षण
फूड प्वाइज़निंग होने पर रोगी के पेट में ऐठन, जी मिचलाने, डायरिया और कभी-कभी बुखार और ठंड जैसे लक्षण हो सकते हैं| इसके लक्षण खाना खाने के 2 घंटे से लेकर कुछ दिनों में प्रकट हो सकते हैं| कभी-कभी तो फूट प्वाइजनिंग पेट के फ्लू और वायरल संक्रमण में अंतर कम कर पाना मुश्किल हो जाता है| क्योंकि इनके लक्षण करीबन एक जैसे ही होते हैं |
उपचार
फूड प्वाइज़निंग में रोगी को बहुत परेशानी होती है| लेकिन आमतौर पर रोगी की हालत गंभीर नहीं होती, और उसी समय पर डॉक्टर की सलाह पर उल्टी रोकने वाली दवा उचित मात्रा में पेय पदार्थ लेने और आराम करने पर रोगी की हालत में जल्दी सुधार हो जाता है|
अधिकतर लोगों को एंटीबायोटिक दवा लेने की जरूरत नहीं पड़ती, विषाक्त खाद्य पदार्थों का पता भोजन की जांच अथवा टट्टी की जांच से चल जाता है| जीआरडिया जैसे परजीवी के संक्रमण होने पर रोगी का इलाज अलग तरीके से किया जाता है | कभी-कभी इसके लक्षण इनफ्लामेट्री बॉउल सिंड्रोम या गंभीर पाचन समस्या के रूप में प्रकट होते हैं |
बचाव
फूड प्वाइजनिंग से बचने का सबसे बेहतर तरीका यह है, कि किसी खाद्य पदार्थ को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह से धो लेना चाहिए, और कच्चे मास, अंडे को छूने और बाथरूम से आने के बाद हाथों को किसी एंटीबैक्टीरियल साबुन से अच्छी तरह साफ कर लेना चाहिए| जितनी भोजन की जरूरत हो उतना ही बनाना चाहिए | और पच जाने पर उसे सही तापक्रम पर रखना चाहिए, आमतौर पर लोग बचे हुए सॉस और मसालों को फ्रिज में नहीं रखते, जिससे कि जीवाणु इन में तेजी से वृद्धि करते हैं |
अधिक उम्र के लोगों और बच्चों के पाचन तंत्र के कार्य क्षमता कम होती है , और उनमें जीवाणुओं को नष्ट करने वाले स्ट्रोमैक एसिड भी कम होते हैं| इसके कारण उनमें खाद्य विषाक्तता होने पर उनकी हालत गंभीर हो जाती है| गर्भवती महिलाओं को भी खाने-पीने के मामले में अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत होती है| इसके अलावा मधुमेह कैंसर या एड्स जैसी कर किसी गंभीर बीमारी है, कमजोर प्रतिरक्षा क्षमता वाले लोगों में फूट पाइजिंग होने का खतरा अधिक होता है, और उनका इलाज करना मुश्किल हो जाता है|
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