ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ क्या है | What are the Tamarithian Cultures
ताम्रपाषाण संस्कृतियाँ-नवपाषाण युग का अन्त होते-होते धातुओं का इस्तेमाल शुरू हो गया। सबसे पहले ताँबे का प्रयोग हुआ और कई संस्कृतियों का आधार हुआ पत्थर और ताँबे के उपकरणों का साथ-साथ प्रयोग। ऐसी संस्कृतियों को ताम्रपाषाणिक (कैल्कोलिथिक) कहते हैं, जिसका अर्थ है पत्थर और ताँबे के उपयोग की अवस्था। तकनीकी दृष्टि से ताम्रपाषाण अवस्था का प्रयोग हड़प्पा से पहले की संस्कृतियों के लिए होता है। ताम्रपाषाण युग के लोग अधिकांशत: पत्थर और ताँबे की बस्तुओं का प्रयोग करते थे, किन्तु कभी-कभी वे घटिया किस्म के ताँबे का भी प्रयोग करते थे । वे मुख्यत: ग्रामीण समुदाय थे और देश के ऐसे विशाल भागों में फैले थे जहाँ पहाड़ी ज़मीन और नदियाँ थीं इसके विपरीत हडप्पाई लोग कांसे का प्रयोग करते थे और सिन्धु घाटी के बाढ़ वाले मैदानों में हुई उपज की बदौलत नगर निवासी हो गए थे। भारत में ताम्रपाषाण अवस्था की बस्तियाँ दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण पूर्वी भारत में पाई गई हैं। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में दो स्थलों की खुदाई हुई है, एक अहार में और दूसरा गिलुंड में । ये स्थल बनास घाटी के सूखे अंचलों में हैं। पश्चिमी मध्य प्रदेश में मालवा, कयथा और एरण स्थलों ताप्रपाषाण संस्कृति की एक विलक्षणता है मालवा मृद्भांड, जो ताम्रपाषाण मृद्भांड में उत्कृष्टतम माना गया है। इसके कुछ मृद्भांड और अन्य सांस्कृतिक सामग्री महाराष्ट्र में भी पाई गई है, परन्तु सबसे विस्तृत उत्खनन पश्चिमी महाराष्ट्र में हुए हैं। जहाँ उत्खनन हुए हैं वे स्थल हैं-अहमदनगर जिले में जोरवे, नेवासा और दैमाबाद; पुणे जिले में चन्दोली, सांनगाँव और इनामगाँव, प्रकाश और नासिक ये सभी स्थल जोरवे संस्कृति के हैं, यह नाम जोरवे स्थल के आधार पर दिया गया है, जो अहमदनगर जिले में गोदावरी नदी की शाखा-नदी प्रवरा के बाएँ तट पर अवस्थित प्ररूपिक स्थल (टाईप साइट) है। जोरवे संस्कृति ने मालवा से बहुत कुछ लिया है।
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