भूखे को भोजन ......

एक राजा प्रतिदिन पहले किसी अतिथि को भोजन करते उसके बाद ही स्वयं भोजन ग्रहण करते थे | एक दिन शाम हो गयी लेकिन उनके यहाँ कोई अतिथि नहीं आया | वह रात में भूखे ही सो गए |
अगले दिन भी दोपहर तक कोई अतिथि नहीं आया तो वह घर से बहार निकले | कुछ ही दूर एक वृद्ध दिखाई दिया | राजा में विनम्रता से कहा - क्या आप मेरे घर भोजन करने की कृपा करेंगे ? वृद्ध भूंखा था उसमे तिरन्त निमंत्रण स्वीकार कर लिया | राजा उसे अपने घर ले गए |
वृद्ध को आदर से बैठा दिया गया | सामने भोजन परोसा गया | भोजन पेश करते समय परिवार की महिला ने "जय श्री राम" -  कहा |वृद्ध ने भोजन आरम्भ करने से पहले भगवान का नाम नहीं लिया | राजा को गुस्सा आ गया | वह बोले, "भले मानुस, भोजन से पहले तो कम से कम भगवान का नाम ले लिया करें "|
बूढ़े ने कहा, "हमारे कबीले में ऐसा रिवाज नहीं है हमारे कबीले में खाने से पहले जरुरी नहीं है की भगवान का नाम लिया जाये", इतना सुनते ही पास खड़े इंसान ने उसे अपमानित करके भगा दिया | राजा उस दिन भी भूंखे सोये |सपने में उन्हें भगवान की ने दिए दर्शन दिए और बोले, "अरे पागल ! मैं इस व्यक्ति को नब्बे साल से खिला रहा हूँ और तू उसे एक दिन भी ना खिला पाया |"
किसी की सेवा करते समय शर्त रखना उचित नहीं | तभी राजा की आंखे खुल गयी | उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ |


अगर आप किसी की मदद करते है इसका मतलब ये नहीं है की आप अपनी शर्ते उस व्यक्ति पर डाले |





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