सबकी बात ना माना कर // a reality of world


सबकी बात ना माना कर , खुद को भी पहचाना कर
दुनिया में जीना है तो , कुछ अमृत पीना है तो
अपनी ओर निशान कर
सबकी बात ना माना कर

दुनिया जल है , मरुथल भी
उपवन भी है , जंगल भी
माना बहुत सायानी है , थोड़ी थोड़ी पागल भी
इसकी बात जो मानेगा , खुद की क्या पहचानेगा
चल खुद की झकझोर कुंवर
लौट आ अपनी ओर कुंवर
कब तक  यु ही भटकेगा , अपना ठौर -ठिकाना कर
सबकी बात ना माना कर , खुद को भी पहचाना कर

तूने फूल भी कांटे भी , कुछ पाए कुछ बांटे भी
तेरे साथ रहे हरदम , मेले भी सन्नाटे भी
धूप अगर , बरसात भी है
दिन है , तो फिर रात भी है
गर्मी सर्दी सहते दिन , नहीं एक से रहते दिन
सुख दुःख दोनों के घर में , अपना आना जाना कर
सबकी बात ना माना कर , खुद को भी पहचाना कर

ये जो यार मोहब्बत है , ये तो कागज की छत है
अंगारे में दहती है , आँसू पीती रहती है |
तू है अगर मोहब्बत में , लिखदे ये प्रिय के खत में
या तो दीवाना हो जा , या मुझको दीवाना कर
सबकी बात ना माना कर , खुद को भी पहचाना कर

खुश होना सबसे मिलकर , रहना फूलों सा खिलकर
सच की रहो में चलकर , राहों को ही मंज़िल कर
प्रिय में अपनी प्यास जगा, मधुर मिलन की आस जगा सबको ही मनमीत बना ,दर्द मिले तो गीत बना
दुनिया बहुत सुहानी है इसकी और सुहाना बना
सबकी बात ना माना कर , खुद को भी पहचाना कर


                                    - dr.kuvar bechain

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