भूगोल की शाखाएँ-Branches of geography
भूगोल अध्ययन का एक अंतर्शिक्षण (Interdisciplinary) विषय है। प्रत्येक विषय का अध्ययन कुछ उपागमों के अनुसार किया जाता है।
इस दृष्टि से भूगोल के अध्ययन के दो प्रमुख उपागम हैं:
(1) विषय वस्तुगत (क्रमबद्ध उपागम)
( 2 ) प्रादेशिक
विषय वस्तुगत भूगोल का उपागम वही है जो सामान्य भूगोल का होता है। यह उपागम एक जर्मन भूगोलवेत्ता, अलेक्ज़ेंडर वॉन हम्बोल्ट (1769-1859) द्वारा प्रवर्तित किया गया, जबकि प्रादेशिक भूगोल का विकास हम्बोल्ट के समकालीन एक दूसरे जर्मन भूगोलवेत्ता कार्ल रिटर (1779-1859) द्वारा किया गया।
विषयवस्तुगत उपागम में एक तथ्य का पूरे विश्वस्तर पर अध्ययन किया जाता है। तत्पश्चात् क्षेत्रीय स्वरूप के वर्गीकृत प्रकारों की पहचान की जाती है। उदाहरणार्थ, यदि कोई प्राकृतिक वनस्पति के अध्ययन में रूचि रखता है, तो सर्वप्रथम विश्व स्तर पर उसका अध्ययन किया जायेगा, फिर प्रकारात्मक वर्गीकरण, जैसे विषुवतरेखीय सदाबहार वन, नरम लकड़ीवाले कोणधारी वन अथवा मानसूनी वन इत्यादि की पहचान, उनका विवेचन तथा सीमांकन करना होगा। प्रादेशिक उपागम में विश्व को विभिन्न पदानुक्रमिक स्तर के प्रदेशों में विभक्त किया जाता है और फिर एक विशेष प्रदेश में सभी भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। ये प्रदेश प्राकृतिक, राजनीतिक या निर्दिष्ट (नामित) प्रदेश हो सकते हैं। एक प्रदेश में तथ्यों का अध्ययन समग्रता से विविधता में एकता की खोज करते हुए किया जाता है। द्वैतवाद भूगोल की एक मुख्य विशेषता है। इसका प्रारंभ से ही विषय में प्रवर्तन हो चुका था। द्वैतवाद (द्विधा) अध्ययन में महत्व दिये जाने वाले पक्ष पर निर्भर करता है। पहले विद्वान भौतिक भूगोल पर बल देते थे। परंतु बाद में स्वीकार किया गया कि मानव धरातल का समाकलित भाग है, वह प्रकृति का अनिवार्य अंग है। उसने सांस्कृतिक विकास के माध्यम से भी योगदान दिया है। इस प्रकार मानवीय क्रियाओं पर बल देने के साथ मानव भूगोल का विकास हुआ।
भूगोल की शाखाएँ ( विषयवस्तुगत या क्रमबद्ध उपागम के आधार पर )
(अ) भौतिक भूगोल
(i) भू-आकृति विज्ञान: यह भू-आकृतियों, उनके क्रम विकास एवं संबंधित प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है।
(ii) जलवायु विज्ञान: इसके अंतर्गत वायुमंडल की संरचना, मौसम तथा जलवायु के तत्त्व, जलवायु के प्रकार तथा जलवायु प्रदेश का अध्ययन किया जाता है।
(ii) जल-विज्ञान: यह धरातल के जल परिमंडल जिसमें समुद्र, नदी, झील तथा अन्य जलाशय सम्मिलित हैं तथा उसका मानव सहित विभिन्न प्रकार के जीवों एवं उनके कार्यों पर प्रभाव का अध्ययन है।
(iv) मृदा भूगोल: यह मिट्टी निर्माण की प्रक्रियाओं, मिट्टी के प्रकार, उनका उत्पादकता स्तर, वितरण एवं उपयोग आदि के अध्ययन से संबंधित है।
( ब ) मानव भूगोल
(i) सामाजिक/सांस्कृतिक भूगोल: इसके अंतर्गत
समाज तथा इसकी स्थानिक / प्रादेशिक गत्यात्मकता (Dynamism) एवं समाज के योगदान से निर्मित सांस्कृतिक तत्वों का अध्ययन आता है।
(ii) जनसंख्या एवं अधिवास भूगोलः यह ग्रामीण तथा नगरीय क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि, उसका वितरण, घनत्व, लिंग - अनुपात, प्रवास एवं व्यावसायिक संरचना आदि का अध्ययन करता है जबकि अधिवास भूगोल में ग्रामीण तथा नगरीय अधिवासों के वितरण प्रारूप तथा अन्य विशेषताओं का अध्ययन किया जाता है।
(iii) आर्थिक भूगोल: यह मानव की आर्थिक क्रियाओं, जैसे- कृषि, उद्योग, पर्यटन, व्यापार एवं परिवहन, अवस्थापना तत्त्व एवं सेवाओं का अध्ययन है।
(iv) ऐतिहासिक भूगोल: यह उन ऐतिहासिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जो क्षेत्र को संगठित करती हैं। प्रत्येक प्रदेश वर्तमान स्थिति में आने के पूर्व ऐतिहासिक अनुभवों से गुजरता है। भौगोलिक तत्त्वों में भी सामयिक परिवर्तन होते रहते हैं और इसी की व्याख्या ऐतिहासिक भूगोल का ध्येय है।
(v) राजनीतिक भूगोल: यह क्षेत्र को राजनीतिक घटनाओं की दृष्टि से देखता है एवं सीमाओं, निकटस्थ पड़ोसी इकाइयों के मध्य भू-वैन्यासिक संबंध, निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन एवं चुनाव परिदृश्य का विश्लेषण करता है। साथ ही जनसंख्या के राजनीतिक व्यवहार को समझने के लिए सैद्धांतिक रूपरेखा विकसित करता है।
भौतिक भूगोल एवं मानव भूगोल के अंतरापृष्ठ (Interface) के फलस्वरूप जीव-भूगोल का
(क) दर्शन
(i) भौगोलिक चिंतन
(ii) भूमि एवं मानव अंतर्प्रक्रिया / मानव पारिस्थितिकी
(ख) विधितंत्र एवं तकनीक
(i)सामान्य एवं संगणक आधारित
(ii)मानचित्रण
(iii)परिमाणात्मक तकनीक / सांख्यिकी
(iv)तकनीक
क्षेत्र सर्वेक्षण विधियाँ-
भू-सूचना विज्ञान तकनीक (Geoinformatics), जैसेदूर संवेदन तकनीक, भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.), वैश्विक स्थितीय तंत्र (G.P.S.)
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