Hindi Motivational Poem Jeevan Nahi Mara Karta Hai | हिंदी कविता - जीवन नहीं मरा करती है
कविवर गोपालदास 'नीरज' हिंदी के वर्तमान युग के प्रमुख कवि रहे हैं। उन्होंने प्रस्तुत कविता में बड़े मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है कि हमें दुख या विपत्ति में घबराना नहीं चाहिए। यहाँ कवि ने ऐसे लोगों पर व्यंग्य किया है जो छिप-छिपकर अश्रु बहाते हैं, नफरत को गले लगाते हैं और दूसरों पर कीचड़ उछालते हैं।
छिप-छिपकर अश्रु बहाने वालो!
मोती व्यर्थ लुटाने वालो!
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।।
सपना क्या है ? नयन-सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी।
गीली उमर बनाने वालो!
डूबे बिना
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।।
माला बिखर गयी तो क्या है,
खुद ही हल हो गयी समस्या।
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई समस्या।
रूठे दिवस मनाने वालो!
फटी कमीज सिलाने वालो!
कुछ दीयों के बुझ जाने से ऑगन नहीं मरा करता है।।
खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी,
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती।
वस्त्र बदलकर आने वालो!
चाल बदलकर जाने वालो!
चंद खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।।
कितनी बार गगरियाँ फूटीं
शिकन न आयी पर पनघट पर।
कितनी बार किश्तियाँ डूबीं
चहल-पहल वैसी है तट पर।
तम की उमर बढ़ाने वालो!
लौ की आयु घटाने वालो!
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।।
लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गंध फूल की।
तूफानों तक ने छेड़ा, पर-
खिड़की बंद न हुई धूल की।
नफरत गले लगाने वालो!
सब पर धूल उड़ाने वालो!
कुछ मुखड़ों की नाराजी से दर्पण नहीं मरा करता है।।
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