प्रारंभिक पाषाणकालीन औजार पर निबंध
प्रारंभिक पाषाणकालीन औजार :- इस काल के औजार पाषाण के बने होते थे। इनमें से कुछ इस प्रकार के थे - हाथ की कुल्हाड़ी, खंडक, उपकरण, कोर, फलक, खुरचनी, बेधनियाँ, ब्यूरिन, छिद्रक आदि। इस संस्कृति के अवशेष सोहन घाटी तथा दक्षिण भारत में मद्रासियन संस्कृति, महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार आदि जगहों पर पाए गए हैं।
मध्य प्रदेश में भीमबेटका तथा कश्मीर मे बुर्जाहोम से पुरापाषाण युग की गुफाओं का अवशेष मिले हैं। इस समय मनुष्य भोजन संग्रहकथा। इस समय कला तथा धर्म के प्रति अभिरचि बढ़ी। नक्काशी तथा चित्रकारी दोनों रूपों में कला व्यापक रूप में देखने को मिलती है। भीमवेटका की गुफाओं से उत्तर-पाषाणकालीन गुफा चित्र मिले हैं । ये चित्र ऐसी अंधेरी गुफाओं में पाए गए हैं जहाँ प्रकाश पहुँचना कठिन है।
मध्य पाषाण युग में बर्फ की जगह घास से भरे मैदान एवं जंगल उगने प्रारंभ हो गए। इसी युग में खरगोश, हिरन, बकरी आदि जानवर पैदा हुए।
इस समय के प्रमुख हथियार थे-
इकधार फलक, वेधनी, अर्धचंद्राकार तथा समलंब। भारत में अनेक स्थलों से इस संस्कृति के प्रमाण मिले हैं- वीरभानपुर (पं. बंगाल) संघनाज, टेरी समूह, आजमगढ़, बागोर, मोरहना पहाड़ आदि। इस युग में जनसंख्या में वृद्धि तथा आखेट की सुगमता के साथ-साथ मनुष्य अब छोटो-छोटी टोलियों में रहने लगा। स्थायी निवास की परंपरा निकली तथा मिट्टी के बर्तन भी बनने लगे।
विंध्याचल की गुफाओं तथा शैलाश्रयों से शिकार, युद्ध एवं नृत्य के चित्र मिल हैं इस प्रकार हम देखते हैं कि पुरापाषाण तथा मध्यपाषाण युग में मनुष्य भोजन संग्राहक के रूप में कार्य कर रहा था। भारतीय उपमहाद्वीप में कई जगहों पर पुरापापाण तथा मध्यपाषाण संस्कृति के अवशेष मिले हैं।
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