विश्वस्तरीय संदर्भ में नवपापाण युग 9000 ई०पू० से आरंभ होता है।
भारतीय उपमहाद्वीप में नवपाषाण युग की एक एसी बस्ती मिली हे जिसका समय 7000 ई०पू० बताया जाता है । यह पाकिस्तान के एक प्रांत बलूचिस्तान में अवस्थित मेहरगढ़ में है । इस युग के लोग पालिशदार पत्थर के औजारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। ये खासतौर से पत्थर हथियारों का प्रयोग करते थे। ये कुल्हाड़ियाँ देश के पहाड़ी इलाकों के अनेकों भाग में विशाल मात्रा में पाई गई हैं।
उत्तर-पश्चिम में कश्मीरी नवपापाण संस्कृति की कई विशेषताएँ हैं जैसे गर्तावास (गड्ढा-घर), मृद्भांड की विविधता, पत्थर और हड्डी के औजारों का प्रकार और सूक्ष्म-पाषाण का पूरा अभाव। इसका एक महत्त्वपूर्ण स्थल है वुज्ज़ाहोम, जिसका अर्थ है जन्म-स्थान। एक अन्य नवपाषाण स्थल है गुफकराल (कुलाल अर्थात् कुम्हार की गुहा) जो श्रीनगर से 41 कि.मी. दक्षिण पश्चिम में है । यहाँ के लोग कृषि और पशुपालन दोनों धंधे करते थे।
जहाँ प्रचुर मात्रा में हड्डी का उपकरण पाया गया हो भारत में ऐसा एक ही स्थान चिरांद है, जो गंगा के उत्तर किनारे पर पटना से 40 कि.मी. पश्चिम में है । ये उपकरण हिरन के सींगों के हैं और परवर्ती नवपापाण परिवेश में 100 सेंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्र में पाए गए हैं। यहाँ बस्ती इसलिए संभव हुई कि गंगा, सोन, गंडक और घाघरा इन चार नदियों का संगमस्थल होने के कारण यहाँ खुली जमीन उपलब्ध थी। यहाँ पत्थर के औजार की कमी ध्यान योग्य है। बुर्जाहोम के लोग रुखड़े धूसर मृद्भांडों का प्रयोग करते थे। बुर्जाहोम के वारे में सबसे पूर्व की तिथि 2400 ई.पू. है, किंतु चिरांद में मिली हड्डियों की तिथि 1600 ई.पू. से पहले नहीं रखी जा सकती है, और संभवत: वे औजार पाषाण-ताम्र अवस्था के हैं।
नवपापाण युग के लोगों का दूसरा समूह दक्षिण-भारत में गोदावरी नदी के दक्षिण में रहता था।
नवपापाण युग में मनुष्य प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करता था।
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